[भाषण]
सत्यमेव जयति नानृतम, सत्येन पन्था
विततोदेवयानः|
येनाक्रमंती ऋषियो हि आप्तकामा,
यत्र तत्र सत्यस्य परमम् निधानम ||
आज पन्द्रह अगस्त स्वतंत्रता दिवस
की इस पावन बेला में उपस्थित हमारे विद्यालय के आदरणीय प्रधानाचार्य महोदय, विद्यालय
के सभी सम्माननीय शिक्षकगण, भारतीय गरिमा-महिमा-कृति-कीर्ति के भविष्य का भार अपनी
तेजोमय भुजाओं में उठाने वाले मेरे सभी विद्यार्थीगण तथा जिज्ञाषा भाव से पधारे
अन्य सभी श्रोताओं !
यह देश ऋषियों
का देश रहा है, यह देश संत-महात्माओं का देश रहा है, यह जो देश है मित्रों! सदैव
प्रकाश में रत रहने वाला देश है इसीलिए इसका जो नाम है, क्या है ? भारत है ,
ऋषियों ने कहा भारत जो है सदैव प्रकाश में ही रत रहता है वह अँधेरे में कभी नहीं
रहता | भारत शब्द में भा का अर्थ प्रकाश से है और रत का अर्थ रहने से है अतः भारत
जो है वह प्रकाश में जीता है और पूरी दुनिया को भी अपने योगत्व प्रकाश से प्रकाशित करता था, करता है और आगे भी करता रहेगा | 15
अगस्त 1947 की स्वतंत्रता इसी सत्य की शक्ति की ओर इंगित भी करता है |
मेरे मित्रों ! आज आजादी के 71 वर्ष पुरे होने के बाद 72वां स्वतंत्रता दिवस हम सभी मना रहे हैं | सोने की
चिड़ियाँ कही जाने वाली इस भारत की धरती पर सम्पूर्ण विश्व की नजर है | यह देश
अनेकता में एकता का महान सन्देश प्रदान करती रही है | एकता के बदौलत ही जातिवाद से
पृथक होकर हमारे देश के नौजवानों ने, वरीय संतों ने तथा सभी नर-नारी, बूढ़े-बचे
मिलकर देश को आजाद कराया | अंग्रेजों के चंगुल से बाहर निकालकर हम सभी को एक नया
स्वतंत्र भारत दिया | हम भूले नहीं उन शहीदों को, हम भूले नहीं उन जवानों को, हम भूले नहीं उन किसानों
को, हम भूले नहीं उन संतो को जिन्होंने अपना पूरा जीवन ही देश की आजादी में
न्योछावर कर दिया था | हम सभी आज उन सभी की याद में स्वतंत्रता दिवस मनाने के लिए
यहाँ पर उपस्थित हुवे हैं |
मेरे मित्रों ! प्रत्येक वर्ष हम
स्वतंत्रता की इस महान बेला पर अनेक भाषण एवं अभिभाषण सुनते है लेकिन केवल भाषण सुनाने
से और सुनने से क्या होगा जब तक हम उसे अपने अंतरतर में नहीं उतारेंगे | देश तो
आजाद हो गया, देश तो स्वतंत्र हो गया, लेकिन केवल अंग्रेजों से, अंग्रेजियत से
नहीं | हमारे देश से अंग्रेज तो चले गए लेकिन अपनी अग्रेजियत छोड़ गए , जिसकी चपेट
में हम ऐसे बंधते चले गए कि अपनी संस्कृति ही भूल गए, अपने संस्कार ही भूल गए,
अपनी गरिमा ही भुलाने लगे |
अतः आज आवश्यकता है कुरीतियों के
बंधन से स्वतंत्र होने की, आज आवश्यकता है भेद भाव के जाल से अलग होने की, आज
आवश्यकता है अंधविश्वासों से, बैमानियत से, अधर्म से, पाप से, वैमनस्व से,
व्यभिचार से अगल होने की | स्वतंत्रता
दिवस की इस महान बेला पर हम सभी अपने भीतर भी परिवर्तन लाने का संकल्प लें | यह
आजादी का दिन बड़े दुर्लभ से हमें प्राप्त हुवा है इसका सभी मिलकर सम्मान करें |
वह सेवक वर धन्य है, देश
कि चिंता होय |
हर बाधा अरु विघ्न में,
अडिग रहे डर खोय ||
-
सनियात
जय हिन्द ! जय भारत !!