Search

Wikipedia

Search results

Poem on Prime Minister of India | प्रधान मंत्री पर कविता | नरेन्द्र मोदी पर कविता

माननीय प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी की प्रशस्ति में 


भारत की गौरव-गरिमा को आप शिखर तक पहुँचाये हैं, 
अपने अद्भुत साहस के बल विश्व-पटल पर भी छाये हैं। 
रूस, चीन, जापान सभी भारत की शक्ति जान रहे हैं, 
फ्रांस, अमेरिका, इंगलैण्ड इसकी गरिमा पहचान रहे हैं। 
यू ए ई और इजरायल भी मोदी की महिमा गाते है,ं
जहाँ विश्व-सम्मेलन होता, वहीं मोदी जी छा जाते हैं।

ज्ञान, ध्यान,विज्ञान साथ ले, सत्य धर्म के हैं सम्बोधि, 
जहाँ कहीं भी आप जा रहे, लोग कह रहे मोदी! मोदी!
ऋषि तुल्य इनका जीवन है, अनुपम अनुशासन तंत्री हैं, 
आजादी के बाद देश को, ऐसा मिला प्रधानमंत्री है। 
मेकइन इंडिया की दृष्टि से, विश्व शक्ति को भाॅप रहे हैं। 
और आपके सिंह गर्जन से, पाक-चीन भी काॅप रहे हैं। 
राष्ट्रीयता का शंखनाद इनके भाषण में बोल रहा है,
ओज पूर्ण वाणी सुन, गर्वित धरती-अम्बर डोल रहा है।

देशहित में जो भी होता, बिना हिचक, निर्णय लेते है,
वोट बैंक की राजनीति को, कभी नहीं प्रश्रय देते हैं।
स्वार्थवाद की राजनीति से, मुक्त देश हो यह सवाल है,
तुष्टिकरण की क्षुद्रनीति से, हुआ देश का बुरा हाल है। 

संसद में जब भाषण देते, सन्नाटा सा छा जाता है, 
कथ्य, तथ्य के साथ सत्य शब्दों में बँधकर आ जाता है। 
वाणी के हैं आप बाजीगर ओज-तेज के प्रभापुंज हैं, 
शब्द-शक्ति के आवाहन में राष्ट्र भक्ति की भरी गूँज है।

सुनकर तीखे व्यंग-वाण भी, सभी विरोधी हुए पस्त हैं,
देश-भक्ति के आवाह्न से, राष्ट्र विरोधी हुए त्रास्त हैं। 
हर भारत वासी को अपने धर्म-संस्कृति से जोड़ रहे हैं, 
नव-विकास पथ पर चलने को, नई पीढ़ी को मोड़ रहे हैं।

सबका साथ विकास सभी का जीते हैं विश्वास सभी का, 
विश्व शक्ति भारत बन जाये, श्वाँस-श्वाँस प्रयास इसी का। 
आगे ले जा रहे देश को, नव विकास के सत्य शोधी हैं,
भारत का है भाग्य, मिले प्रधानमंत्री नरेन्द्रमोदी हैं। 
-सुखनन्दन सिंह ‘सदय’
सम्पादक, विहंगम योग संदेश
(आध्यात्मिक मासिक पत्रिका)
झूँसी, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश
Mob. 9430151677 

प्रेस विज्ञप्ति अन्तराष्ट्रीय योग दिवस 2019 [विहंगम योग] | Vihangam Yoga

प्रेस विज्ञप्ति

महर्षि सदाफलदेव आश्रम, झूँसी (प्रयाग) में अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस समारोह सम्पन्न

अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस (21 जून) के अवसर पर महर्षि सदाफलदेव आश्रम, झूँसी (प्रयाग) के सत्संग-भवन में एक भव्य कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिसमें सैकड़ों व्यक्तियों ने भाग लिया। कार्यक्रम का शुभारम्भ प्रातः 7 बजे माननीय विशिष्ट अतिथियों द्वारा दीप-प्रज्वलन से किया गया। इसके बाद स्वागत-गान और मंगल-गान की भाव-प्रवण प्रस्तुति के साथ आसन-प्राणायाम का प्रशिक्षण आश्रम के सुयोग्य योग-प्रशिक्षक श्री रमेश कुमार और श्री राकेश कुमार के द्वारा करीब एक घंटे तक दिया गया। शारीरिक स्वास्थ्य सम्बन्धी अनेक आसनों को उपस्थित जन-समूह द्वारा तन्मयता और शान्ति के साथ सहजतापूर्वक किया गया और इसके साथ ही प्राणायाम के कुछ महत्त्वपूर्ण विधियों को भी सहज ढंग से सिखलाया गया। आसन-प्राणायाम प्रशिक्षण के बाद प्रयाग विहंगम योग संत-समाज के संयोजक श्री रामबाबू गुप्ता जी के द्वारा एक गीत ‘योग दिवस आया है’ को स्वर-लय के साथ प्रस्तुत किया गया। इसके पश्चात् ‘विहंगम योग सन्देश’ आध्यात्मिक मासिक पत्रिका के सम्पादक श्री सुखनन्दन सिंह ‘सदय’ द्वारा योग के यथार्थ पर सम्यक् रूप से प्रकाश डाला गया। आपने अपने प्रवचन में बतलाया कि आसन-प्राणायाम के द्वारा शरीर और मन स्वस्थ रहता है और यह योग-साधन की प्राथमिक अवस्था है। मगर इसके आगे मन का साधन और आत्मिक चेतना का साधन भी आवश्यक है जिससे हमारा शारीरिक विकास के साथ-साथ मानसिक, बौद्धिक और आत्मिक विकास भी हो सके और अन्ततः योग के अन्तिम लक्ष्य आत्म-चेतना द्वारा परमात्मा की  प्राप्ति समर्थ सद्गुरु के संरक्षण में प्राप्त किया जा सके।

इस अवसर पर आश्रम के वरिष्ठ गुरुभाई एवं प्रखर प्रचारक श्री विजय बहादुर सिंह जी के द्वारा धन्यवाद ज्ञापित किया गया। अन्त में संक्षिप्त वंदना, आरती और शान्ति-पाठ से इस योग-सत्रा का समापन हुआ।

इस पावन अवसर पर सैकड़ों योग-साधकों एवं साधिकाओं के साथ विशेष रूप से विद्यालय के प्राचार्य श्री रुद्रमणि मिश्र, उपप्राचार्य श्री करुणा सागर मिश्र, श्री गौतम दुबे, श्री आलोक साहा, श्री रामबाबू गुप्ता, श्री विजय बहादुर सिंह, डाॅ0 सच्चिदानन्द प्रसाद और श्री धर्मेन्द्र कुमार उपस्थित रहे। सम्पूर्ण कार्यक्रम का सफल संचालन श्री श्रीकान्त शर्मा द्वारा किया गया। 

सूर्य संयम | Surya Sanyam in Hindi

          सूर्य संयम 


            


भारतीय संस्कृति के अंदर अनेक प्रकार के संयमों की चर्चा की गई है।

भारतीय संस्कृति अपने आप में अद्भुत है, अलौकिक है, अद्वितीय है । इस अद्भुत संस्कृति के अंदर सूर्य-संयम का एक विशेष प्रावधान मानव के कल्याणार्थ बतलाया गया है।

सूर्य पर संयम कई तरह से किए जाते हैं एक शरीर के अंदर में संयम होता है जिसकी जानकारी किसी विशेष गुरु के माध्यम से ही होती है और एक सरल विधि सूर्य संयम की है, जिस विधि में प्राकृतिक सूर्य पर संयम किया जाता है। 

एक विशेष विधि द्वारा, एक विशेष प्रक्रिया के द्वारा प्राकृतिक सूर्य पर संयम करने से अनेक प्रकार के शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होते हैं।

सूर्य संयम से बाह्य लाभ तो होता ही है। अन्य लाभ के रुप में हम भुवनों का ज्ञान कर पाते हैं।

समस्त भुवनों का ज्ञान सूर्य संयम के अभ्यास द्वारा सहजता में प्राप्त हो जाता है। हमारे भारतीय ऋषियों ने, संत महात्माओं ने इस सूर्य संयम की विशेषता को बतलाया है तथा इसका अभ्यास करके अपने अंदर अद्भुत आध्यात्मिक शक्ति को प्राप्त किया है । यह संयम अध्यात्म-विज्ञान के अंदर बड़ा ही अलौकिक संयम माना जाता है इसलिए इसे बिना अच्छी तरह से जाने अपने मन से अभ्यास नहीं करना चाहिए। 


पतंजलि ऋषि ने पातंजल योगदर्शन के अंदर सूर्य संयम के 
विषय में बताते हुए कहा है

-

           ''भुवनज्ञानं सूर्ये संयमात्"


अर्थात् सूर्य में संयम करने से भुवन का ज्ञान होता है।

इस श्लोक का वास्तविक भाष्य करते हुए अनंत श्री सद्गुरु सदाफल देव जी महाराज लिखते हैं कि सूर्य मंडल के आधार पर जितने लोक हैं उनको 'भुवन' कहते हैं ।

गुरु विधान से सूर्य में संयम करने से सूर्य मंडलांतर्गत जितने लोक हैं और जहां तक सूर्य का प्रकाश है उन लोकों का यथार्थ अपरोक्ष ज्ञान होता है।

इतना जानने के बाद अब आपको लग रहा होगा कि यह सूर्य संयम तो बड़ा ही अद्भुत है लेकिन इसे कैसे किया जाए।

इसकी विधि क्या है? तो आइए हम जानते हैं सूर्य संयम कैसे किया जाता है । आगे बढ़ने से पहले मैं बता दूं अनंत श्री सद्गुरु सदाफल देव जी महाराज ने सूर्य संयम के विषय में बताते हुए अपनी पुस्तक बाल शिक्षा भाग 2 पृष्ठ संख्या 62 में  विशेष रूप से  सूर्य संयम के विषय में  बताते हुए कहा है कि सूर्य में संयम करने से भुवन का ज्ञान होता है।

यह तो योग विभूति है इसके लिए बड़ा जीवन चाहिए तब होता है। विद्वान पुरुष अपने प्रयोगों द्वारा सूर्य की शक्ति अपने में ले सकता है। सूर्य की शक्ति अपने में अवतरित होती है, होगी।

सूर्य से विश्व विजयी महातेज, महाबल तथा महाप्रताप और महा व्यक्तित्व, विज्ञानवेत्ता अपने प्रयोगों द्वारा प्राप्त कर लेता है।

इस संसार क्षेत्र में बड़ा लाभ होता है। 15-15 मिनट दोनों काल सूर्य के सामने इसका प्रयोग आप करें। आप में जीवनी-शक्ति आएगी। अनुभव होगा ।


इसके अलावा सूर्य-संयम के विषय में सदगुरुदेव आगे विश्व राज्य-विधान के अंदर भी इसके विषय में लिखे हैं। विदित हो 'विश्व राज्य विधान' अनंत श्री सदगुरु सदाफल देव जी महाराज द्वारा रचित संपूर्ण विश्व को एक अद्भुत देन है।

'विश्व राज्य विधान' के अंदर विश्व के कल्याण हेतु अनेक  विधानों का वर्णन है जिसे जानकर, अपनाकर व्यक्ति का ही नहीं अपितु समाज का, साथ ही संपूर्ण विश्व का आध्यात्मिक, आर्थिक और सामाजिक लाभ प्राप्त होगा।


राजनीतिज्ञ जन जो राजनीति में उतर कर देश सेवा में अपने आप को लगाए हुए हैं। वह भी गुरु विधान से सूर्य-संयम को यदि करेंगे तो निश्चय ही देश की विशेष सेवा कर पाएंगे।

बुद्धि प्रखर होगी चित्त स्थिर होगा तो देश की भी सेवा उतनी ही स्थिरता के साथ कर पाएंगे।

सूर्य संयम करने की विधि

प्राकृतिक सूर्य-संयम करने के लिए प्रातः काल जब सूर्य अपनी लालिमा लेकर उदित होता है । 

तब अपने नेत्रों के द्वारा एक टक एकाग्रचित होकर लगातार देखें तथा उस पर ध्यान लगावें । 

यही सूर्य संयम की विधि है । यह विधि अस्त के समय भी अपनाई जाती है। 2 से 5 मिनट अधिक से अधिक 15 मिनट सूर्य को लगातार एक टक देखना 'सूर्य-संयम' कहलाता है ।

अध्यात्म जगत के सम्राट, सूर्य के समान देदीप्यमान प्रथम परंपरा सद्गुरु आचार्य श्री धर्मचंद्र देव जी महाराज ने सूर्य संयम की विशेष विधि का वर्णन करते हुए साधकों के उत्थान एवं बौद्धिक तथा आध्यात्मिक प्रगति के लिए बतलाया है कि सूर्य संयम और प्राणायाम एवं मूल बंध शीर्षासन करने से साधक का शारीरिक स्वास्थ्य दृढ़ होता है। इसका प्रभाव मानसिक क्षेत्र पर भी अनुकूल पड़ता है।

आगे प्रथम आचार्य श्री बतलाते हैं कि सूर्य के सामने सूर्योदय की प्रथम किरणों को अपने मुखमण्डल, छाती, ग्रीवा एवं पृष्ठभाग पर मेरुदंड में लेने से एक प्रकार का ओज आ जाता है।
 सूर्य के सामने मानसिक संकल्प के साथ सूर्य की शक्ति का अपने भीतर आकर्षण करना चाहिए। यह विद्यार्थियों तथा व्यायाम करने वालों के लिए उपयोगी है।

 
आगे पुनः सूर्य संयम के विषय में बतलाते हुए प्रथम आचार्य श्री कहते हैं कि नेत्र संचालन और आसेक एवं सूर्य की किरणों को भूमि के सामने दृष्टि खोलकर देखना और मानसिक संकल्प अपने विशेष प्रदेश में केंद्रित रहें यही सूर्य संयम है।

 बिना गुरु के अपने मन से यह क्रिया नहीं करनी चाहिए। सूर्य के सामने दृष्टि रखने से सूर्य की गर्मी आंख की शक्ति नष्ट करती है इस बात का भी ध्यान रखें।

प्रथम परंपरा सद्गुरु आचार्य श्री धर्मचन्द्रदेव जी महाराज ने सूर्य संयम में विशेष सावधानी बरतने की बात कही है  ध्यान हम सभी को रखना चाहिए। सदगुरुदेव के अनुसार सूर्य प्रकृति के अंदर एक महान शक्ति है। सूर्य द्वारा अंतर-योगाभ्यास द्वारा से तेज, बल, प्रताप  होता है। यह योगविद्या है। इसका ज्ञान अध्यात्मविद्या के ज्ञाता परम महर्षि द्वारा हो ककता है।  भौतिक विज्ञान में बाह्य सूर्य-संयम द्वारा अनेक रोग, कष्टों की निवृति हो सकती है। चर्मरोग इससे दूर होते हैं। विजय शक्ति का संग्रह सूर्य के किरणों के प्रयोग द्वारा हो सकता है।  अग्नि और सूर्य की उपासना वैदिक है।  इसकी उपासना  विज्ञानयुक्त और साधनयुक्त हो, तब सूर्य-संयम का प्रभाव जीवन पर पूरा पड़ता है।  सारे अंग-प्रत्यंग पर सूर्य की शक्ति  शक्ति है। प्राकृतिक विज्ञान और अंतर के दिव्य प्रयोग से सूर्य का तेज , प्रताप जीवन में अवतीर्ण होता है। अतएव सूर्य-संयम महान विज्ञान है। अतएव काल के भेद से प्रत्येक व्यक्ति प्रत्येक  नहीं कर सकता है।  सूर्य की किरणों से जल में शक्ति रहती है। सूर्य से मानसिक शक्ति का उद्धार होता है। जीवन में उन्नति के अनेक दृष्टिकोण हैं। तेज, बल, प्रताप के लिए सूर्य का संयम है।  ईश्वर प्राप्ति के लिए नहीं।
 इसके अलावा एक संयम अंदर में होता है जिसे आंतरिक सूर्य-संयम कहते हैं । यह सूर्य-संयम किसी आध्यात्मिक गुरु के द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है। यह एक विशेष विधि है। 

यह विधि बिना गुरु के शरण लिए प्राप्त नहीं हो सकता। आप यह जान लें बाहरी सूर्य-संयम से शारीरिक विकास होता है। 

मानसिक विकास होता है और आध्यात्मिक विकास में सहायता मिलती है लेकिन आंतरिक संयम बाहरी सूर्य संयम से कई गुना विशाल होता है, शक्तिशाली होता है तथा सूक्ष्म होता है।


अतः आंतरिक सूर्य-संयम को सीखने के लिए आप ब्रह्मनिष्ठ सद्गुरु तथा इसके योग्य गुरु के शरण में जावें और सूर्य संयम सीखकर अपने जीवन को शक्तियों से परिपूर्ण कर परिवार की, समाज की तथा संपूर्ण विश्व की सेवा में अपने इस दुर्लभ मानव जीवन को लगावे।


Picture source From Pixabay and Article written by Dr. Binod Kumar Naturopathy.

अध्यात्म शिखर सद्गुरु स्वतंत्रदेव जीवन-दर्पण [शरद-सप्तति महोत्सव]

अध्यात्म शिखर सद्गुरु स्वतंत्रदेव जीवन-दर्पण

शरद-सप्तति महोत्सव



अध्यात्म शिखर सद्गुरु आचार्य स्वतंत्रदेव : जीवन-दर्पण’ एक महान दिव्य सद्ग्रन्थ है, जिसमें सद्गुरु आचार्य श्री स्वतंत्रदेव जी महाराज के सम्पूर्ण दिव्य जीवन पर प्रकाश डाला गया है। इस सद्ग्रन्थ में कुल ग्यारह खण्ड है जो अद्भुत, अलौकिक, अद्वितीय ढंग से अपनी सम्पूर्णता को संजोये हुए है।

प्रथम खण्ड 


प्रथम खण्ड परमपूज्य गुरुदेव के जीवन के सत्तर वर्षों का एक प्रकाश-चित्र है जिसका रेखांकन अद्भुत रूप में प्रस्तुत किया गया है। ऋषिकुल-परम्परा से लेकर विश्वशान्ति चेतना याज्ञिक तक के विषय इस प्रथम खण्ड में समाहित हैं। इसके साथ ही ‘सद्गुरु-स्तवन’ से सम्बन्धित कुछ कविताओं के साथ इस प्रथम खण्ड का समापन होता है। 

द्वितीय खण्ड


द्वितीय खण्ड ‘कृति कौस्तुभ’ परमपूज्य सद्गुरु आचार्य स्वतंत्रदेव जी महाराज की महान कृतियों पर एक विश्लेषण है। इन कृतियों में ‘सा विद्या या विमुक्तये’ का शंखनाद है। अध्यात्म के अवतरण के ये याज्ञिक अनुष्ठान सद्गुरुदेव की कृतियों में प्रतिबिम्बत हैं। कई अध्यात्मपरक सद्ग्रन्थों की रचना के साथ कई सत्य-संधानजन्य ग्रंथों पर भाष्य लिखकर आपने जिस सर्जनात्मक ज्ञान-यात्रा का परिदृश्य उपस्थित किया है, वह प्राचीन ऋषि-परम्परा को समृद्धतर बनाता है।

भाष्य भास्वत’ में एक सुसम्बद्ध ज्ञान की अवधारणा भासमान है, जो अनुवाद नहीं बल्कि परोक्ष-अपरोक्ष अनुभूति का आख्यान है। ‘संतमत अभिमत’ में सद्गुरुदेव ने महान संत कबीर की विलक्षण वाणियों में निःसृत अध्यात्म और साधना से परिपूर्ण गूढ़ रहस्यों को सहजता के साथ व्याख्यायित किया है। इन व्याख्याओं में संतमत की आत्मा अनुप्राणित है और आध्यात्मिक रहस्यों की अनावृत्ति अनुशासित है। इसी तरह ‘वैदिक विशद चिन्तन’ में वेद-सम्बन्धी कतिपय विषयों पर मार्गदर्शक चिन्तन है। भारतीय जीवन के प्रेरणास्रोत वेद हैं जो शाश्वत ज्ञान की मंत्र-संहिताओं के संचयन हैं। सद्गुरुदेव अपने कतिपय आलेखों में ही इस महान ज्ञान के प्रकाश को सामान्यजन के लिए भी सुबोध बनाकर उनके आत्मकल्याण का मार्ग प्रशस्त कराने के लिए पर्याप्त दिशा-दर्शन प्रदान किये हैं। इन वैदिक आलेखों में सत्य का सन्धान है और वेदों के तात्विक ज्ञान का बोधगम्य अनुष्ठान भी है। 

तृतीय खण्ड


तृतीय खण्ड को ‘विश्व उद्बोधन’ नाम से अभिसित किया गया है। ‘विश्व उद्भोधन’ में विश्व के विभिन्न देशों में सद्गुरुदेव के परिभ्रमण का संक्षिप्त वृत्तान्त है और वहां के लोगों के लिए अध्यात्म से जुड़ने का एक सशक्त आह्वान है। भारत के द्वितीय राष्ट़्रपति महान दार्शनिक डाॅ0 राधकृष्णन ने एक जगह कहा है- ''जहां विज्ञान हमें बाहरी दुनिया के निर्माण में सहायता करता है, वहीं दर्शन[अध्यात्म] हमारे नैतिक और आध्यात्मिक जीवन का निर्माण करता है।'' ' विश्व उद्बोधन' खण्ड तो जिज्ञासु होकर विश्व आवे,  कर्मगति हमसे पढ़े' इस मंत्र-वाक्य का व्यावहारिक अनुष्ठान है।  मानवमात्र में नैतिकता और आध्यात्मिकता का स्वर मुखरित करने के लिए सदगुरुदेव सारे देश में भ्रमण करने के साथ विश्व के कई देशों में भी जा चुके हैं। विश्व के जिन देशों में सदगुरुदेव के पवित्र चरण पड़े हैं, उसी का एक संक्षिप्त लेखा-जोखा इस खण्ड में प्रस्तुत किया गया है। 

चतुर्थ खण्ड 


इस ग्रन्थ के चतुर्थ खंड का नाम 'शून्य से निर्माण के शिखर की ओर' रखा गया है। वास्तव में इस ग्रन्थ का चतुर्थ खंड शून्य से निर्माण के शिखर की ओर सदगुरुदेव के निर्माण सम्बन्धी कीर्ति-स्तम्भ का परिचायक है। महर्षि सदाफलदेव जी महाराज अपने जीवन काल में कुछ भी नया निर्माण करने के सुझाव को निरस्त कर देते थे और कहा करते थे कि सभी निर्माण-कार्य को करने वाला आएगा और वही इसे पूरा करेगा। स्वामीजी की भविष्यवाणी के अनुसार सभी निर्माण-कार्यों को शून्य से शिखर तक पहुँचाने वाले द्वितीय परम्परा सदगुरु आचार्य श्री स्वतंत्रदेव जी महाराज का आविर्भाव इसी विशेष अर्थ में हुवा है।  ब्रह्मविद्या के विश्व प्रचार के साथ निर्माण-यज्ञ की पूर्णता की यात्रा तक के सभी कार्य आपके संरक्षण में ही सम्पादित हो रहे हैं और आगे भी होने वाले हैं। आपके यशस्वी कर-कमलों द्वारा निर्माण का जो इतिहास रचा गया है उसे सम्पूर्णता में समेटना सहज नहीं है। सभी आश्रमों के निर्माण को शून्य से शिखर तक पहुँचाने के साथ-साथ 'स्वर्वेद महामंदिर निर्माण' की भव्यतम योजना को मूर्त्तरूप देने का जो महँ कार्य आपने सम्पादित किया है उसका एक संक्षिप्त रूप इस 'शून्य से निर्माण के शिखर की और' खंड में दर्शाया गया है।  यह विनिर्माण-यज्ञ अभी चल ही रहा है। सदगुरुदेव इस महान निर्माण-यज्ञ के आज के याज्ञिक हैं। शून्य से शिखर तक की निर्माण-यात्रा के इस महान यज्ञ के आप उद्गाता हैं और उत्प्रेरक भी।

पंचम खण्ड


पंचम खंड का नाम 'वाणी अमृत धारा' रखा गया है। इस खंड में अनंत श्री सदगुरु स्वतंत्रदेव जी महाराज जी के दुर्लभ अमृतवाणियों का अनूठा संग्रह है। विभिन्न आयोजनों में सदगुरुदेव के मुखारविन्द से निःसृत अमृतमय वाणियों को एक स्थान  पर संग्रहित किया गया है। इन अमृतवाणियों के एक-एक वाकया में अध्यात्म का दिव्या स्पंदन है, एक-एक पृष्ठ पर अनुभूतिजन्य स्पर्श का सुरभित चन्दन है और एक-एक शीर्षक में मुक्ति के मंत्र का याज्ञिक अनुष्ठान है। 'वाणी अमृत धारा' खंड तो अध्यात्म के सिद्धांत और साधना के समस्त तत्वज्ञान का अक्षय कोष है और आध्यात्मिक वाङ्गमय की अजस्र ऊर्जा का जिवंत शब्दकोश है। सम्पूर्ण अध्यात्म-विज्ञान का सर इस प्रवचन संग्रह में संगृहित है।  यह शाश्वत सत्य के आभ्यन्तरिक अनुसंधान के प्रकाशमान ज्योतिपर्व का एक सुदृढ़ अनुष्ठान है। फिर भी अभी बहुत कुछ शेष रह गया है और अमृतवाणी के कुछ स्रोतों की धारा ही इसमें निनादित हो पायी है।

षष्ठ खण्ड


षष्ठ  खंड का नाम 'दिव्य अनुभूति' रखा गया है। इसमें अनंत श्री सदगुरु स्वतंत्रदेव जी महाराज जी के सान्निध्य में समर्पित और श्रद्धा समन्वित भाव से रहने वाले अनेक शिष्य शिष्याओं के जीवन में  सदगुरुदेव के कृपा प्रसादात बहुत सी अनुभूतियाँ संग्रहित लो गयी हैं। महर्षि पतंजलि ने अपने योगदर्शन में पांच प्रकार की सिद्धियों का वर्णन किया है - जन्म सिद्धि, औषध सिद्धि, मंत्र सिद्धि, तप सिद्धि और समाधि सिद्धि, यथा- ''जन्मौषधिमन्त्रतपः समाधिजः सिद्धयः। '' इन सभी सिद्धियों से भी श्रेष्ठ एक योगबल होता है जो विशुद्ध रूप से ब्रह्मविद्या विहंगम ोग के चेतन-साधन से अत्यंत उच्चावस्था में प्राप्त होता है।  सदगुरु-कृपा से होने वाली अनुभूतियाँ और आपके आध्यात्मिक प्रयोग से प्रकट होने वाली किंचित दिव्य विभूतियों को इस खंड में संगृहीत किया गया है जो पाठकों के लिए एक प्रेरक शक्ति प्रदान करती हैं।

 सप्तम खण्ड


इस सदग्रंथ का सप्तम खंड सदगुरुदेव की सदुक्तियों का संग्रह है जिसमें जिअं को दिशा-बोध देने वाले प्रेरक सशक्त सूत्र हैं। इसमें अध्यात्म के साथ मानवमात्र के लौकिक और पारलौकिक जीवन को उत्कृष्ट बनाने वाले मन्त्रपूत वाक्य हैं और विश्व-शांति के मंगदर्शक अध्याय हैं। सदगुरुदेव की इन उक्तियों में एक प्राणवंत चेतना का उर्ध्व प्रवाह है जिसके साथ अपने को जोड़कर हम एक आदर्श मानव बन सकते हैं।

अष्टम खण्ड


अष्टम खंड का नाम समाधान रखा गया है। इसमें अध्यात्म-सम्बन्धी अनेक दुरूह प्रश्नों का समाधा स्वयं सदगुरुदेव द्वारा किया गया है।  प्रश्नोत्तर के रूप में उभरे ये शब्द मानव-मन में उतरे अनेक संशयों का निवारण कर उसमे ज्ञान का प्रकाश भर देते हैं। आत्म-चेतना के उत्थान में यह 'सामधान' एक ऊर्जस्वित शक्ति प्रदान करता है। उलझे हुए मानव मन को सुलझाने में 'समाधान' के वाक्य सार्थक बोध प्रदान करते हैं और जीवन-यात्रा को आदर्श-पथ पर प्रतिष्ठित करने का आधान भी देते हैं।

नवम खण्ड


नवम खंड में समर्पित सेवाव्रती शिष्यों के विषय में बताया गया है।  इस खंड दो भागों में विभाजित है। प्रथम में ऐसे सेवाव्रती शिष्य जी नहीं रहे और दूसरे में वे जो वर्तमान में अपनी सेवा-भक्ति का परिचय दे रहे हैं। जो सेवाव्रती शिष्य नहीं रहे उनके प्रति इस खंड में शब्दांजलि-श्रद्धांजलि के भाव हैं और जो वर्तमान के हैं उनके लिए सदगुरुदेव के स्नेहिल आशीष की कामना है।  इस खंड के लिए ऐसे समर्पित सेवाव्रती शिष्य-शिष्याओं की लम्बी सूची है जिनमे से कतिपय प्रमुख व्यक्तियों को ही समाहित किया जा सका है। साधना और सेवा के क्षेत्र में उभरे ये नाम हम सबको एक प्रेरणा प्रदान करते हैं।

दशम खण्ड


दशम खंड का नाम 'पत्र लोक' रखा गया है। सदगुरुदेव अपने प्रचार-काल के प्रारम्भ से लेकर अभी तक पत्र विनिमय के माध्यम से अपने भक्त-प्रेमियों और विहंगम योग के अनुयायियों से सतत संपर्क बनाये रखने के उद्देश्य से उनके सुख दुःख से स्वयं को जोड़कर अपने आशीर्वाद से भी उन्हें अभिसिक्त करते हैं। दशम खंड सदगुरुदेव के  पत्र लोक की पवित्रता का परिचायक है, उनकी कृपा दृष्टि का संवाहक है। 

एकादश खण्ड


एकादश खंड का नाम 'चित्र-वीथिका' रखा गया है।  इस खंड में सदगुरुदेव के देश-विदेश में हुए विभिन्न कार्योक्रमों के साक्षी के रूप में ये चित्र बहुत कुछ बोलते नजर आते हैं। इस प्रचार यात्रा के क्रम में अनेक विशिष्ट व्यक्तियों का सान्निध्य सदगुरुदेव को मिलता हरहा है और उन सबकी आकांक्षा रहती है आपके दर्शन और आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए। ऐसे संदर्भीन को छत्र वीथिका अपने माध्यम से सजीव बना देती है। 

गणतंत्र दिवस पर भाषण | Speech on Republic Day | 26 January Speech for children 2019

गणतंत्र दिवस - 26 जनवरी

[भाषण]
सत्यमेव जयति नानृतम, सत्येन पन्था विततोदेवयानः|
येनाक्रमंती ऋषियो हि आप्तकामा, यत्र तत्र सत्यस्य परमम् निधानम ||

आज छब्बीस जनवरी गणतंत्र दिवस की इस पावन बेला में उपस्थित हमारे विद्यालय के आदरणीय प्रधानाचार्य महोदय, विद्यालय के सभी सम्माननीय शिक्षकगण, भारतीय गरिमा-महिमा-कृति-कीर्ति के भविष्य का भार अपनी तेजोमय भुजाओं में उठाने वाले मेरे सभी विद्यार्थीगण तथा जिज्ञाषा भाव से पधारे अन्य सभी श्रोताओं !

 आज का दिन बड़ा ही पावन एवं हर्षोल्लास का दिन है | आज ही के दिन हमारा देश गणतंत्र हुआ था | भारत का प्रत्येक नागरिक 26 जनवरी 1950 से एक ऐसे सूत्र में बंधा गया, जिस सूत्र ने अनेकता की कालिमा को, अश्पृश्यता की कालिमा को, असामाजिक गतिविधियों को संविधान की ज्योति देकर दूर कर दिया | समानता के अधिकार ने भारत में हो रहे असमानता को रोक कर देश के उन सभी नागरिकों को सुन्दर एवं सुखमय भविष्य बनाने का समान अवसर प्रदान किया | 

बंधुओं! जब कोई देश गणतंत्र हो जाता है तब उस देश में जनता की शक्ति सर्वोच्च हो जाती है | तब शासक चयन की शक्ति जनता के पास आ जाती है | जनता अपने संवैधानिक नियमों के आधार पर कर्तव्याकर्तव्य के बीच सत्य निर्णय लेकर देश के उत्थान हेतु शासकों का चयन करती है | इस व्यवस्था को मूर्त रूप देने में तथा देश को स्वतंत्र करने में अनेक वीरों ने अपने जीवन को आहूत किया है | इसलिए हमें गर्व होना चाहिए अपने देश के लोकतांत्रिक प्रणाली पर, हमें गर्व होना चाहिए अपने देश के संविधान पर, हमें गर्व होना चाहिए संविधान निर्मात्री डॉ. भीमराव अंबेडकर पर, हमें गर्व होना चाहिए सरदार बल्लभ भाई पटेल पर, हमें गर्व होना चाहिए डॉ. राजेंद्र प्रसाद पर, हमें गर्व होना चाहिए अबुल कलाम आजाद पर, हमें गर्व होना चाहिए उन सभी सदस्यों पर भी जिन्होंने अथक परिश्रम करके 2 वर्ष 11 महीने एवं 18 दिन में ही भारत देश के विशाल संविधान का निर्माण किया | एक ऐसा नियम, एक ऐसी व्यवस्था उन्होंने दी जिसका लक्ष्य देश में शांति, सुख और समानता की स्थापना करना था | 70वाँ गणतंत्र दिवस का यह पावन पर्व एक दिव्यता के साथ पुरे भारत वर्ष में हम सभी मिलकर मना रहे हैं | आप सबों की पावन उपस्थिति में मै बस इतना कहकर अपनी वाणी को विराम दूंगा/दूंगी कि 


नियम व्यवस्था देश की, उत्तम और महान |
सुखी सुरक्षित सभी रहे, लक्ष्य बना संविधान ||

संविधान निर्माण में, देश भक्त विद्वान् |
आज़ादी के बाद भी, दिए पूर्ण योगदान ||

उन्नीस सौ उन्चास में, नवम्बर का मास |
छब्बीस तारीख पूर्ण हुआ, संविधान यह ख़ास ||

संविधान लागू हुआ, उन्नीस सौ पच्चास में |
हुआ देश गणतंत्र, मना ख़ुशी उल्लास में ||

राष्ट्र पर्व यह बन गया, अब देश मनाता शान से |
दिव्य देश भारत मेरा, कहते हैं स्वाभिमान से ||

जय जय भारत मातृभूमि यह, मिली हमें बलिदान से |
वीर विरांगिनी बाल-बृद्ध भी, शहीद हुए हैं शान से ||

जय जय भारत जय जय भारत, बोल उठा इस गान से |
एक साथ एक स्वर में बोलें, हम हैं हिन्दुस्तान से || भारत भूमि महान से || हम हैं हिन्दुस्तान से ||

जय हिन्द ! जय भारत !!

 - सनियात
सम्पादक एवं संस्थापक
Word to Dictionary, Gyapak
Website:- www.wordtodictionary.com
www.gyapak.com
                                             


गणतंत्रता दिवस पर कविता (2019) Poem on Republic Day in Hindi

गणतंत्रता दिवस पर कविता (2019)



नियम व्यवस्था देश की, उत्तम और महान |
सुखी सुरक्षित सभी रहे, लक्ष्य बना संविधान ||

संविधान निर्माण में, देश भक्त विद्वान् |
आज़ादी के बाद भी, दिए पूर्ण योगदान ||

उन्नीस सौ उन्चास में, नवम्बर का मास |
छब्बीस तारीख पूर्ण हुआ, संविधान यह ख़ास ||

संविधान लागू हुआ, उन्नीस सौ पच्चास में |
हुआ देश गणतंत्र, मना ख़ुशी उल्लास में ||

राष्ट्र पर्व यह बन गया, अब देश मनाता शान से |
दिव्य देश भारत मेरा, कहते हैं स्वाभिमान से ||

जय जय भारत मातृभूमि यह, मिली हमें बलिदान से |
वीर विरांगिनी बाल-बृद्ध भी, शहीद हुए हैं शान से ||

जय जय भारत जय जय भारत, बोल उठा इस गान से |
एक साथ एक स्वर में बोलें, हम हैं हिन्दुस्तान से || भारत भूमि महान से || हम हैं हिन्दुस्तान से ||

||जय हिन्द जय भारत ||

-सनियात
सम्पादक एवं संस्थापक
Word to Dictionary, Gyapak
Website:- www.wordtodictionary.com
www.gyapak.com