Search

Wikipedia

Search results

भारतरत्न - डॉ ए0पी0जे0 अब्दुल कलाम | Dr. A P J Abdul Kalam | कलाम जी की जीवनी

भारतरत्न - डॉ ए0पी0जे0 अब्दुल कलाम

तमिलनाडु के रामेश्वरम् में पिता जैनुलाबदीन और माता आशियम्मा के यहाँ 15 अक्टूबर 1931 को जन्मे अब्दुल कलाम का पूरा नाम ‘ए0पी0जे0 अब्दुल कलाम’ है। परदादा का नाम अबुल (ए0), दादा का नाम पकीर (पी0), पिता का नाम जैनुलाबदीन (जे0) और अपना नाम अब्दुल की समग्रता को सँजोये वे ‘ए0पी0जे0 अब्दुल कलाम’ के नाम से जाने गये।

पिता मछुआरे का कार्य करते थे और साथ में लकड़ी का नौका भी बनाते थे। उन्होंने गरीबी को करीबी से देखा था। इसीलिए अपनी पढ़ाई के खर्चे के लिए उन्होंने अखबार भी बेचा और कभी-कभी परचून की दुकान पर बैठकर छोटी-मोटी सामग्री भी बेची। पिता धनुषकोटि और रामेश्वरम् के बीच यात्रियों को मोटरवोट से लाने ले जाने का कार्य किया करते थे।

चचेरे भाई शम्सुद्दीन अखबार बेचने का कार्य करते थे। बचपन में कलाम साहब उनके कार्य में भी हाथ बँटाते रहे। बहन जोहरा और बहनोई अहमद जलालुद्दीन भी कलाम साहब को पढ़ाने में हर तरह की मदद के लिए तैयार रहते थे। कहा जाता है कि आगे इंजिनियरिंग की पढ़ाई के लिए जब कुछ पैसे कम पड़ रहे थे तो बहन जोहरा ने अपने गहने गिरवी रखकर उनकी मदद की थी। इस तरह उनका प्रारम्भिक जीवन आर्थिक कठिनाइयों के बीच बीता। मगर उच्च शिक्षा प्राप्त करने की उनकी जिजीविषा बचपन से ही उछाल मार रही थी। 

बचपन में कागज का जहाज बनाकर हवा में उछाला करते थे। कौन जानता था कि यही बालक जो कागज के जहाज से खेलता है, एक दिन वैमानिकी इंजिनियरिंग में एम0आइ0टी0 से डिग्री प्राप्त करके भारत-सरकार को अपनी वैज्ञानिक प्रतिभा से चमत्कृत कर देगा। ब्रह्माण्ड-विज्ञान और वैमानिकी इंजिनियरिंग में उनकी आन्तरिक प्रेरणा और अभिरुचि थी। मद्रास इन्स्टीच्यूट आॅफ टेक्नोलाॅजी (MIT) में पढ़ाई करने के सम्बन्ध में आपने एक जगह टिप्पणी की है- ‘‘वैमानिकी एक बहुत ही मजेदार एवं रुचिकर विषय है, जिसमें उन्मुक्तता है, आजादी है। आजादी और पलायन, गति और हलचल तथा सरकने एवं प्रवाह के बीच एक बड़ा जो फर्क है, वही इस विज्ञान की गोपनीयता है।’’

वैमानिकी इंजिनियरिंग पास करने के बाद आपने हिन्दुस्तान एयरोनाॅटिक्स लिमिटेड (एच0ए0एल0) में प्रशिक्षु के रूप में अपनी सेवा का योगदान दिया। फिर तो वायुयान की तरह ही इनके जीवन की उड़ान गतिशील होती गई और एक दिन वे भारत के मिसाइल मैन के रूप में चर्चित हो उठे। पायलट बनने की इच्छा थी मगर मिसाइल मैन की नियति को उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया। अग्नि और पृथ्वी जैसे मिसाइल तैयार करने में आपकी अहम भूमिका रही। इस उत्कर्ष को प्राप्त करने में कलाम साहब को एक कर्मठतापूर्ण तकनीकी सफर से गुजरना पड़ा। इंजिनियरिंग पास करने के बाद डी0टी0डी0पी0 में सन् 1958 में पहली सरकारी नौकरी मिली।

नित्य नये-नये आविष्कारों के प्रति आपकी जुझारू रुझान को देखकर उन्हें कई लोग ‘सनकी आविष्कारक’ की संज्ञा से भी विभूषित करने लगे। इनकी उपलब्धियों को देखकर उन्हें ‘इण्डियन कमिटि फाॅर स्पेस रिसर्च’ की ओर से राॅकेट इंजिनियरिंग पद के साक्षात्कार के लिए बुलाया गया जहाँ डाॅ0 विक्रम साराभाई जैसे चोटी के वैज्ञानिक ने उनका साक्षात्कार लिया। वे इस पद के लिए चुन लिये गये। इसके बाद राॅकेट प्रक्षेपण के क्षेत्रा में प्रशिक्षण के लिए इन्हें अमेरिका में नासा (नेशनल एयरोनाॅटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन) भेज दिया गया। वहाँ से लौटने  पर डाॅ0 साराभाई ने उन्हें इस सम्बन्ध में स्वदेशी तकनीक के सहारे राॅकेट बनाने का सुझाव दिया। आखिर कलाम साहब के अथक प्रयास से 8 जुलाई 1980 को श्री हरिकोटा से एस.एल.बी.-3 ने उड़ान भरी। सारा देश इस वैज्ञानिक उपलब्धि से गर्वित हो उठा। मगर इस महान् उपलब्धि के समय उनके आशीर्वादक पिता, हर तरह का सहयोग देने वाले बहनोई जलालुद्दीन और प्रेरणा के स्रोत डाॅ0 साराभाई जीवित नहीं रहे।

उनकी इस उपलब्धि पर तत्कालीन प्रधानमंत्राी श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने उन्हें दिल्ली बुलवाया और कई सांसदों की उपस्थिति में उन्हें सम्मानित किया गया। इसके बाद 1 जून 1982 को उन्हें डी.आर.डी.एल. के निदेशक पद पर सरकार द्वारा नियुक्त किया गया। उनकी वैज्ञानिक-यात्रा सतत आगे बढ़ती गई। पूर्व प्रधानमंत्राी भारतरत्न अटल बिहारी वाजपेयी के वैज्ञानिक सलाहकार के रूप में पोखरण विस्फोट को सन् 1998 में उन्होंने नेतृत्व प्रदान किया। इस परीक्षण की गूँज सारे विश्व में गूँजी। मगर वे सदा कहा करते थे- हमें विनाशरहित विकास चाहिए।

उनकी उड़ान रुकी नहीं और जुलाई 2002 में वे भारत के 12वें राष्ट्रपति के पद पर प्रतिष्ठित हुए। जुलाई 2002 से जुलाई 2007 तक वे भारत के राष्ट्रपति रहे। एक महान् वैज्ञानिक, एक महान् कवि और सुधी संगीत-प्रेमी का राजनीति में प्रवेश स्वयं राजनीति को ही गौरवान्वित कर गया। देश भी गौरवान्वित हुआ उनके जैसा राष्ट्रपति पाकर। भारत का राष्ट्रपति बनने के करीब दस माह पूर्व की एक घटना है। आप 30 सितम्बर 2001 को बोकारो स्टील सिटी आए थे। उनके स्वागत में गठित समिति का मैं भी एक सदस्य था।

उनका हेलीकाॅप्टर धरती से थोड़ा ऊपर ही इंजिन बंद होने से अचानक नीचे गिर पड़ा। अफरा-तफरी मच गई। मगर वे विमान से हँसते हुए और हाथ हिलाकर लोगों का अभिवादन करते हुए बाहर आये। यहाँ पर वे विद्यालय के छात्रों के बीच, स्टील प्लांट के अधिकारियों और कर्मचारियों के बीच तथा अनेक समाजसेवी संस्थाओं के बीच कार्यक्रम में व्यस्त रहे। उन्होंने बोकारो-निवास में रात्रि-विश्राम किया। रात्रि-भोजन के लिए लम्बी मेनु दी गई तो उन्होंने केवल दही और भात (चावल) खाने की इच्छा प्रकट करके सबको चैंका दिया। तब लोगों को पता चला कि वे पूर्णतः शाकाहारी हैं।

बोकारो से लौटने के बाद उन्होंने एक पुस्तक लिखी, जिसका नाम अंग्रेजी में 'IGNITED MIND' और हिन्दी में ‘तेजस्वी मन’ है। इस पुस्तक की पहली ही पंक्ति है- ‘‘30 सितम्बर 2001 को राँची (झारखण्ड) से बोकारो जा रहा था।’’ बोकारो-निवास में रात्रि में आपने एक स्वप्न देखा और उसी पर आधारित उनकी यह पुस्तक है, जिसका पहला अध्याय है- स्वप्न और संदेश। इसमें अन्य कई प्रेरक अध्याय हैं- सत्संग की शक्ति, हमें हमारा आदर्श दो, राजनीति तथा धर्म से परे देशभक्ति आदि।

इस पुस्तक के बारे में आपने स्वयं लिखा है- ‘‘मैं यह पुस्तक इसलिए लिख रहा हूँ ताकि मेरे युवा-पाठक उस आवाज को सुन सकें, जो कह रही है- आगे बढ़ो।’’ उन्होंने आगे कहा है- ‘‘युवा-पीढ़ी ही देश की पूँजी है। हमारा चिन्तन ही हमारी पूँजी है, उद्यम जरिया है और कड़ी मेहनत समाधान है।’’ भारत का यह तत्कालीन प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार ‘सत्संग की शक्ति’ में यह संदेश देता है- ‘‘हमें आध्यात्मिक ताकत के आधार पर अपने विकास का नया माॅडल तैयार करना होगा।’’

डाॅ0 कलाम साहब को बच्चों से विशेष प्यार रहता था। उन्होंने अपनी पुस्तक 'IGNITED MIND' (तेजस्वी मन) को समर्पित किया है गुजरात की एक बच्ची ‘सुश्री स्नेहिल ठक्कर’ को, जिसने देश की गरीबी क्यों है, इसके उत्तर में कहा था- ‘‘अशिक्षा ही देश की गरीबी का मुख्य कारण है।’’ कलाम साहब इस उत्तर से बहुत प्रसन्न हुए और अपने भाषण में अशिक्षा को दूर करने के लिए कई कारगर उपाय भी बतलाये। उन्होंने यह पुस्तक उसी बच्ची के नाम समर्पित किया है।

इसी तरह ‘भारत 2020’ (नव-निर्माण की रूपरेखा) के लेखक द्वय हैं- डाॅ0 ए0पी0जे0 अब्दुल कलाम और वाई0 एस0 सुन्दर राजन। इस पुस्तक का भी समर्पण एक बच्ची के नाम किया गया है जिससे कलाम साहब ने प्रश्न पूछा था- तुम्हारी महत्त्वाकांक्षा क्या है और उसने बिना एक क्षण रुके जवाब दिया था- ‘मैं एक विकसित भारत में जीवन बिताना चाहती हूँ।’ बस इस एक वाक्य ने कलाम साहब को झकझोर दिया था और उसी की परिणति हुई ‘भारत-2020’ के रूप में। यह पुस्तक भी उसी बच्ची के नाम पर समर्पित है।

भारतरत्न डाॅ0 कलाम साहब की प्रसिद्ध उक्ति है- DREAM, CHANGE DREAM IN TO THOUGHT AND THOUGHT INN TO ACTION. यानी स्वप्न देखो, फिर स्वप्न को विचार में ढालो और अन्त में विचार को क्रिया में परिणत कर दो। उनका यह स्वप्न नींद का नहीं बल्कि जाग्रत का स्वप्न है। यह जागरण का मंत्रा है, उच्च लक्ष्य की प्राप्ति के लिए महान् सूत्रा है। ‘उठो, जागो और लक्ष्य को प्राप्त करो’ का यह मांत्रिक उद्घोष है।

उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि स्वप्न वे नहीं होते जिन्हें हम सोने के समय देखते हैं बल्कि स्वप्न तो वे होते हैं जो हमें सोने नहीं देते। ऐसा स्वप्न ही जीवन में जागरण का मंत्रा फूँक देता है। अपनी पुस्तक ‘भारत 2020’ में उन्होंने सिर्फ सपना ही नहीं देखा, बल्कि वे रास्ते भी बताए जिन पर चलकर भारत सन् 2020 तक दुनिया के पाँच सबसे शक्तिशाली राष्ट्रों में एक हो सकता है। इस पुस्तक में भारत के समग्र विकास के लिए कई महत्त्वाकांक्षी योजनाओं के गूढ़-गंभीर आयामों का विश्लेषण है।

इस पुस्तक की भूमिका में लिखा गया है- ‘‘सन् 2020 तक, तथा उसके पूर्व भी, विकसित भारत की कल्पना स्वप्न मात्रा नहीं है। यह कुछ गिने-चुने भारतीयों की प्रेरणा मात्रा भी नहीं होनी चाहिए- यह हम सब भारतीयों का मिशन होना चाहिए जिसे हमें पूर्ण करना है।’’ आज का विकासशील भारत एक ‘विकसित भारत’ भारत कैसे बने यही तो कलाम साहब का जीवंत स्वप्न है। उन्होंने राष्ट्र को एक संदेश दिया है- सुरक्षा का, साम्प्रदायिक सौहार्द का, स्वास्थ्य का, सम्पन्नता का और सम्पदा-संवर्द्धन का। कलाम साहब के पंच-सूत्राी संदेश राष्ट्र-हित में सर्वोपरि है मगर इसके लिए उन्होंने यह भी कहा कि ‘यूनिटी आॅफ माइंड’ से ही यह सम्भव हो सकता है। जहाँ भी राष्ट्र के विकास की बात हो वहाँ हमें सारे मतभेदों को भुलाकर स्वर-में-स्वर मिलाकर आगे बढ़ते जाना है।

अपने देश को आगे बढ़ाने के लिए भी उनका एक सपना था- आर्थिक खुशहाली का, मजबूत सुरक्षा का तथा आपसी प्रेम और सद्भावना का। उन्होंने राष्ट्र का ध्यान दो महत्त्वपूर्ण योजनाओं की ओर आकृष्ट किया- आत्मनिर्भरता का मिशन और टेक्नोलाॅजी विजन 2020। गरीबी से लड़ने के लिए उन्होंने हमें ज्ञान का हथियार दिया। मूल रूप से अशिक्षा ही गरीबी की जननी है। उनका एक और सपना था- भारत को सुपर नाॅलेज पावर बनाने का। वे कहा करते थे कि भारत 2020 तक एक विकसित राष्ट्र बनेगा। विकसित राष्ट्र बनाने में विशेष रूप से छात्रा, युवा, वैज्ञानिक, इंजिनियर, तकनीशियन, शिक्षाविद्, उद्योगपति, अर्थशास्त्राी, चिकित्सा-कर्मी, कलाकार और राजनेता को भी अपनी अग्रणी भूमिका निभानी होगी। आने वाले दिनों में भारत एक महाशक्ति बनेगा- यह उनकी भविष्यवाणी है। हमें इसे साकार करना है। भारत के राजनेताओं को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा था- ‘‘ओ भारतमाता के शिल्पकारो! हमें प्रकाश की ओर ले चलो, हमारा जीवन समृद्ध करो। हमारा सकारात्मक दूरदर्शी नेतृत्व हो। भारत को 2020 तक विकसित राष्ट्र के स्तर पर पहुँचाना है।’’

वे एक महान् वैज्ञानिक थे, उच्चकोटि के कवि थे, संवेदनशील मानवतावादी थे, एक अत्यन्त ही नेक इन्सान थे, जन-जन के नायक थे, छात्रों और युवाओं के लिए एक इन्द्रधनुषी आकर्षण थे और पूरे देश के लिए एक रोल माॅडल थे। उन्होंने कहा था- ‘‘ईश्वर की सृष्टि में प्रत्येक कण का अपना अस्तित्व होता है। प्रत्येक को कुछ-न-कुछ करने के लिए ही परवरदिगार ने बनाया है। उन्हीं में मैं भी एक हूँ। हम सभी अपने भीतर दैवी-शक्ति लेकर जन्मे हैं। हम सबके भीतर ईश्वर का तेज छिपा है। हमारी कोशिश इस तेज-पुंज को पंख देने की होनी चाहिए, जिससे यह चारों ओर अच्छाइयाँ और प्रकाश फैला सके।’’ कलाम साहब का यह संदेश केवल एक दार्शनिक चिन्तन नहीं है बल्कि यथार्थ पर टिका हुआ आदर्श का दिग्दर्शन है।

देश की समस्या के समाधान के सम्बन्ध में कलाम साहब का एक ही वाक्य सब कुछ कह जाता है- श्छंजपवदंसपेम जीम चमवचसम -'NATIONALISE THE PEOPLE & SPIRITUALISE THE RELIGION'. यानी भारत के लोगों में राष्ट्रीयता की भावना भर दो और धर्म को शुद्ध अध्यात्म से जोड़ दो। हम निजी स्वार्थ से ऊपर उठकर राष्ट्रहित को सर्वोपरि समझें और धर्म के नाम पर पनपी विसंगतियों, अन्धविश्वासों, उन्मादों एवं कुरीतियों को छोड़कर शुद्ध अध्यात्म के प्रकाश में अपना आचरण करें, तभी सभी समस्याओं का समाधान हो सकता है।

कलाम साहब से किसी ने प्रश्न किया था- आपकी पसंदीदा पुस्तकें कौन-सी हैं? उन्होंने कहा था कि वैसे तो कई पुस्तकों ने मुझे अधिक प्रभावित किया है मगर दो पुस्तकें- MAN THE UNKNOWN (BY DR. ALEXIS CARREL) और LIGHTS FROM MANY LAMPS (BY LILIAN EICHLER) मुझे अत्यन्त प्रिय है। डाॅ0 एलेक्सिस कैरल को सन् 1912 में मेडिकल साइंस में नोबेल प्राइज मिला था। मनुष्य का जीवन सचमुच एक पहेली है और ज्ञान का स्रोत कई स्थानों से मिल सकता है, इन्हीं तथ्यों का विवेचन इन दोनों पुस्तकों में किया गया है।

कलाम साहब एक महान् शिक्षाविद् के रूप में देश-विदेश में प्रसिद्धि प्राप्त कर चुके हैं। सम्भवतः डाॅ0 राजेन्द्र प्रसाद, डाॅ0 सर्वपल्ली एस0 राधाकृष्णन और डाॅ0 जाकिर हुसेन के बाद वे भारत के ऐसे चैथे राष्ट्रपति हैं जिन्हें राष्ट्राध्यक्ष से भी अधिक शिक्षा के क्षेत्रा में महानता मिली है। शायद डाॅ0 राजेन्द्र प्रसाद के बाद कलाम साहब सर्वाधिक लोकप्रिय राष्ट्रपति के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त किए हैं।

राष्ट्रपति पद से अवकाश ग्रहण करने के बाद आपने शिक्षा के क्षेत्रा में और राष्ट्र नव-निर्माण के क्षेत्रा में छात्रों और युवाओं को मार्गदर्शन देने का बीड़ा उठाया था। बच्चों से मिलकर तो वे स्वयं भी बच्चे बन जाते थे। जीवन का अन्तिम समय भी शिक्षा के महान् यज्ञ में समिधा अर्पित करने जैसा ही हुआ। 27 जुलाई 2015 को उत्तरी-पूर्वी भारत के मेघालय प्रान्त में शिलांग स्थित एक महाविद्यालय के दीक्षांत समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में भाषण देते समय ही अकस्मात् हृदयाघात हो गया। उन्हें शीघ्रता से अस्पताल पहुँचाया गया। खबर मिलते ही सारा देश उनके लिए ईश्वर से दुआ माँगने लगा। मगर तभी एक हृदय-विदारक खबर आयी कि उसी दिन सायं 7 : 45 पर उनका देहावसान हो गया। ज्ञान की एक तड़ित ज्योति मेघालय के आकाश में विलीन हो गई। सारा देश मर्माहत हो उठा। मेघालय से लेकर दिल्ली और फिर दिल्ली से लेकर रामेश्वरम् तक श्रद्धांजली देने वालों का ताँता लग गया। देश के सभी जगहों पर अश्रुपूरित नेत्रों से लोगों ने अपने इस लोकप्रिय आदर्श महामानव को श्रद्धांजली दी। बच्चे से लेकर वृद्ध तक सभी उनकी स्मृति-शेष को अजस्र अश्रु-कण अर्पित किए। सारा देश उनके सम्मान में श्रद्धावनत था।

कलाम साहब का जीवन एक कर्मयोगी और ज्ञानयोगी दोनों का मिश्रण है। वे सादगी के, सदाचारिता के, सत्यवादिता के, परोपकारिता के और सहिष्णुता के प्रखर प्रतिबिम्ब हैं। आज कलाम साहब के पास कहने को न कोई धन है, न सम्पत्ति है, न बंगला है, न परिवार है, न संतति है मगर यह सारा राष्ट्र ही उनका है और वे सारे राष्ट्र के हैं। उनके हृदय का आकाश इतना विस्तृत है कि उसमें सम्पूर्ण विश्व-मानवता अँट सकती है। कलाम साहब इस राष्ट्र की साँस में समाये हुए हैं, यहाँ के छात्रों और नौजवानों के हृदय की धड़कन बन गए हैं। वे अभी जीवित हैं भारतीयों के रग-रग में और भारत के कण-कण में। ऐसे अभूतपूर्व महापुरुष कभी भी भूतपूर्व नहीं होते।

वे सचमुच राष्ट्र की एक अनमोल धरोहर थे। ऐसे राष्ट्रनायक को शतशः नमन! 
Ref. Picture source from teenatheart.com, Author- Sukhnandan singh saday, Aricle source from Apanai Maati Apana Chandan.