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सूर्य संयम Surya Sanyam

          सूर्य संयम 


            
भारतीय संस्कृति के अंदर अनेक प्रकार के संयमों की चर्चा की गई है।
 
भारतीय संस्कृति अपने आप में अद्भुत है, अलौकिक है, अद्वितीय है । इस अद्भुत संस्कृति के अंदर सूर्य-संयम का एक विशेष प्रावधान मानव के कल्याणार्थ बतलाया गया है।
 
सूर्य पर संयम कई तरह से किए जाते हैं एक शरीर के अंदर में संयम होता है जिसकी जानकारी किसी विशेष गुरु के माध्यम से ही होती है और एक सरल विधि सूर्य संयम की है, जिस विधि में प्राकृतिक सूर्य पर संयम किया जाता है।
 

एक विशेष विधि द्वारा, एक विशेष प्रक्रिया के द्वारा प्राकृतिक सूर्य पर संयम करने से अनेक प्रकार के शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होते हैं।



सूर्य संयम से बाह्य लाभ तो होता ही है। अन्य लाभ के रुप में हम भुवनों का ज्ञान कर पाते हैं।

 

समस्त भुवनों का ज्ञान सूर्य संयम के अभ्यास द्वारा सहजता में प्राप्त हो जाता है। हमारे भारतीय ऋषियों ने, संत महात्माओं ने इस सूर्य संयम की विशेषता को बतलाया है तथा इसका अभ्यास करके अपने अंदर अद्भुत आध्यात्मिक शक्ति को प्राप्त किया है । यह संयम अध्यात्म-विज्ञान के अंदर बड़ा ही अलौकिक संयम माना जाता है इसलिए इसे बिना अच्छी तरह से जाने अपने मन से अभ्यास नहीं करना चाहिए। 

 
पतंजलि ऋषि ने पातंजल योगदर्शन के अंदर सूर्य संयम के
विषय में बताते हुए कहा है
 
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           ''भुवनज्ञानं सूर्ये संयमात्"

 
अर्थात् सूर्य में संयम करने से भुवन का ज्ञान होता है।
 
इस श्लोक का वास्तविक भाष्य करते हुए अनंत श्री सद्गुरु सदाफल देव जी महाराज लिखते हैं कि सूर्य मंडल के आधार पर जितने लोक हैं उनको 'भुवन' कहते हैं ।
 
गुरु विधान से सूर्य में संयम करने से सूर्य मंडलांतर्गत जितने लोक हैं और जहां तक सूर्य का प्रकाश है उन लोकों का यथार्थ अपरोक्ष ज्ञान होता है।
 
इतना जानने के बाद अब आपको लग रहा होगा कि यह सूर्य संयम तो बड़ा ही अद्भुत है लेकिन इसे कैसे किया जाए।
 
इसकी विधि क्या है? तो आइए हम जानते हैं सूर्य संयम कैसे किया जाता है । आगे बढ़ने से पहले मैं बता दूं अनंत श्री सद्गुरु सदाफल देव जी महाराज ने सूर्य संयम के विषय में बताते हुए अपनी पुस्तक बाल शिक्षा भाग 2 पृष्ठ संख्या 62 में  विशेष रूप से  सूर्य संयम के विषय में  बताते हुए कहा है कि सूर्य में संयम करने से भुवन का ज्ञान होता है।
 
यह तो योग विभूति है इसके लिए बड़ा जीवन चाहिए तब होता है। विद्वान पुरुष अपने प्रयोगों द्वारा सूर्य की शक्ति अपने में ले सकता है। सूर्य की शक्ति अपने में अवतरित होती है, होगी।
 
सूर्य से विश्व विजयी महातेज, महाबल तथा महाप्रताप और महा व्यक्तित्व, विज्ञानवेत्ता अपने प्रयोगों द्वारा प्राप्त कर लेता है।
 
इस संसार क्षेत्र में बड़ा लाभ होता है। 15-15 मिनट दोनों काल सूर्य के सामने इसका प्रयोग आप करें। आप में जीवनी-शक्ति आएगी। अनुभव होगा ।
 
 
इसके अलावा सूर्य-संयम के विषय में सदगुरुदेव आगे विश्व राज्य-विधान के अंदर भी इसके विषय में लिखे हैं। विदित हो 'विश्व राज्य विधान' अनंत श्री सदगुरु सदाफल देव जी महाराज द्वारा रचित संपूर्ण विश्व को एक अद्भुत देन है।
 

'विश्व राज्य विधान' के अंदर विश्व के कल्याण हेतु अनेक  विधानों का वर्णन है जिसे जानकर, अपनाकर व्यक्ति का ही नहीं अपितु समाज का, साथ ही संपूर्ण विश्व का आध्यात्मिक, आर्थिक और सामाजिक लाभ प्राप्त होगा।


राजनीतिज्ञ जन जो राजनीति में उतर कर देश सेवा में अपने आप को लगाए हुए हैं। वह भी गुरु विधान से सूर्य-संयम को यदि करेंगे तो निश्चय ही देश की विशेष सेवा कर पाएंगे।
 
बुद्धि प्रखर होगी चित्त स्थिर होगा तो देश की भी सेवा उतनी ही स्थिरता के साथ कर पाएंगे।
 

सूर्य संयम करने की विधि

 
प्राकृतिक सूर्य-संयम करने के लिए प्रातः काल जब सूर्य अपनी लालिमा लेकर उदित होता है ।
 
तब अपने नेत्रों के द्वारा एक टक एकाग्रचित होकर लगातार देखें तथा उस पर ध्यान लगावें ।
 
यही सूर्य संयम की विधि है । यह विधि अस्त के समय भी अपनाई जाती है। 2 से 5 मिनट अधिक से अधिक 15 मिनट सूर्य को लगातार एक टक देखना 'सूर्य-संयम' कहलाता है ।

अध्यात्म जगत के सम्राट, सूर्य के समान देदीप्यमान प्रथम परंपरा सद्गुरु आचार्य श्री धर्मचंद्र देव जी महाराज ने सूर्य संयम की विशेष विधि का वर्णन करते हुए साधकों के उत्थान एवं बौद्धिक तथा आध्यात्मिक प्रगति के लिए बतलाया है कि सूर्य संयम और प्राणायाम एवं मूल बंध शीर्षासन करने से साधक का शारीरिक स्वास्थ्य दृढ़ होता है। इसका प्रभाव मानसिक क्षेत्र पर भी अनुकूल पड़ता है।

आगे प्रथम आचार्य श्री बतलाते हैं कि सूर्य के सामने सूर्योदय की प्रथम किरणों को अपने मुखमण्डल, छाती, ग्रीवा एवं पृष्ठभाग पर मेरुदंड में लेने से एक प्रकार का ओज आ जाता है।

सूर्य के सामने मानसिक संकल्प के साथ सूर्य की शक्ति का अपने भीतर आकर्षण करना चाहिए। यह विद्यार्थियों तथा व्यायाम करने वालों के लिए उपयोगी है।

आगे पुनः सूर्य संयम के विषय में बतलाते हुए प्रथम आचार्य श्री कहते हैं कि नेत्र संचालन और आसेक एवं सूर्य की किरणों को भूमि के सामने दृष्टि खोलकर देखना और मानसिक संकल्प अपने विशेष प्रदेश में केंद्रित रहें यही सूर्य संयम है।

बिना गुरु के अपने मन से यह क्रिया नहीं करनी चाहिए। सूर्य के सामने दृष्टि रखने से सूर्य की गर्मी आंख की शक्ति नष्ट करती है इस बात का भी ध्यान रखें।

प्रथम परंपरा सद्गुरु आचार्य श्री धर्मचन्द्रदेव जी महाराज ने सूर्य संयम में विशेष सावधानी बरतने की बात कही है  ध्यान हम सभी को रखना चाहिए। सदगुरुदेव के अनुसार सूर्य प्रकृति के अंदर एक महान शक्ति है। सूर्य द्वारा अंतर-योगाभ्यास द्वारा से तेज, बल, प्रताप  होता है। यह योगविद्या है। इसका ज्ञान अध्यात्मविद्या के ज्ञाता परम महर्षि द्वारा हो ककता है।  भौतिक विज्ञान में बाह्य सूर्य-संयम द्वारा अनेक रोग, कष्टों की निवृति हो सकती है। चर्मरोग इससे दूर होते हैं। विजय शक्ति का संग्रह सूर्य के किरणों के प्रयोग द्वारा हो सकता है।  अग्नि और सूर्य की उपासना वैदिक है।  इसकी उपासना  विज्ञानयुक्त और साधनयुक्त हो, तब सूर्य-संयम का प्रभाव जीवन पर पूरा पड़ता है।  सारे अंग-प्रत्यंग पर सूर्य की शक्ति  शक्ति है। प्राकृतिक विज्ञान और अंतर के दिव्य प्रयोग से सूर्य का तेज , प्रताप जीवन में अवतीर्ण होता है। अतएव सूर्य-संयम महान विज्ञान है। अतएव काल के भेद से प्रत्येक व्यक्ति प्रत्येक  नहीं कर सकता है।  सूर्य की किरणों से जल में शक्ति रहती है। सूर्य से मानसिक शक्ति का उद्धार होता है। जीवन में उन्नति के अनेक दृष्टिकोण हैं। तेज, बल, प्रताप के लिए सूर्य का संयम है।  ईश्वर प्राप्ति के लिए नहीं।

 इसके अलावा एक संयम अंदर में होता है जिसे आंतरिक सूर्य-संयम कहते हैं । यह सूर्य-संयम किसी आध्यात्मिक गुरु के द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है। यह एक विशेष विधि है।
 
यह विधि बिना गुरु के शरण लिए प्राप्त नहीं हो सकता। आप यह जान लें बाहरी सूर्य-संयम से शारीरिक विकास होता है।
 
मानसिक विकास होता है और आध्यात्मिक विकास में सहायता मिलती है लेकिन आंतरिक संयम बाहरी सूर्य संयम से कई गुना विशाल होता है, शक्तिशाली होता है तथा सूक्ष्म होता है।


अतः आंतरिक सूर्य-संयम को सीखने के लिए आप ब्रह्मनिष्ठ सद्गुरु तथा इसके योग्य गुरु के शरण में जावें और सूर्य संयम सीखकर अपने जीवन को शक्तियों से परिपूर्ण कर परिवार की, समाज की तथा संपूर्ण विश्व की सेवा में अपने इस दुर्लभ मानव जीवन को लगावे।

 
Picture source From Pixabay and Article written by Dr. Binod Kumar Naturopathy.