पृथ्वी और शरीर
‘पृथ्वी माता द्यौः नः पिता’ (वेद)। पृथ्वी हमारी माता, आकाश पिता है। पृथ्वी माता के समान है जो मानव-शिशु को सब कुछ देती है। पृथ्वी पाँच गुणों- शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गन्ध से युक्त है। पृथ्वी शक्ति तथा गुणों से सर्वसम्पन्न है। दुर्गन्ध मिटाने, सर्दी-गर्मी रोकने, विदावक शक्ति, विषशोषण, खनिज शक्ति को धारण करने, जल के वेग को रोकने, उष्णता को कम करने, सब कुछ आत्मसात् कर लेने की शक्ति, शरीर से विजातीय द्रव्यों को बाहर निकालने की शक्ति आदि गुण व शक्तियाँ पृथ्वी में विद्यमान हैं। रोगों को दूर करने की अद्भुत क्षमता पृथ्वी में है। प्रो0 स्टाकलास्वा के अनुसार- ‘‘पृथ्वी में एक प्रकार का रेडियम होता है, जो शरीर-ग्रन्थियों को प्रभावित कर स्वास्थ्य-वृद्धि करता है।’’ संतवाणी में आया है- ‘‘माटी ओढ़ना, माटी बिछौना, माटी दाना पानी रे।’’
पृथ्वी में एक विलक्षण शक्ति है जो नंगे पैर चलने वालों के शरीर में ताजगी व जीवन-शक्ति का संचार करती है ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार वृक्षों में शक्ति और जीवन भरती है। जिस प्रकार वृक्ष पृथ्वी से अलग होकर पनप नहीं सकता इसी प्रकार मानव पृथ्वी से संबंध-विच्छेद कर जी नहीं सकता।
समस्त जीव-जन्तु पृथ्वी-स्पर्श से ही स्वस्थ व प्रसन्न रहते हैं। योग-साधना के लिए नंगी भूमि पर सोना नंगे पैर चलना आवश्यक नियम है। प्राचीन भारत के गुरुकुलों में विद्यार्थी, वानप्रस्थी तथा संन्यासी पृथ्वी पर ही सोते थे और नंगे पाँव चलते थे।
अनिद्रा, चिन्ता, बेचैनी घबराहट में खुली पृथ्वी, आकाश के नीचे सोना लाभदायक होता है। उदर के सभी अवयव, हृदय, आँतें पृथ्वी पर सोने से अपार जीवन शक्ति पाते हैं तथा विजातीय द्रव्य आसानी से बाहर हो जाते हैं, शरीर को नयी संजीवनी शक्ति मिलती है। मरने पर शरीर को पृथ्वी में लिटाने की प्रथा वैज्ञानिक है। वह सुख सेज है। पृथ्वी पर नंगे पैर चलना, बैठना, लेटना पूर्णतया लाभकारी है। हमारे ऋषियों ने पृथ्वी की अमोघ शक्ति से विलक्षण कार्य सम्पन्न किया है। जो सुख व आनंद गद्दे में सोने पर 5, 6 घंटे में मिलता है, वह सुख, शांति और आनंद पृथ्वी पर 2 घंटे में प्राप्त हो जाता है।
नंगे पैर पृथ्वी में चलने से पैर मजबूत, स्वस्थ, सुडौल रहते हैं, रक्तभ्रमण समान रहता है। संन्यासी गुरु शिष्यों को नंगे पैर चलने की सलाह देते हैं। नंगे पैर चलने से भूख अधिक लगती है। उच्च रक्तचाप दूर होता है। फादर नीप के शब्दों में- ‘‘नंगे पैर चलने से सिरदर्द, गले की सूजन, पैर और शिर का ठंढा रहना आदि दूर हो जाते हैं’’। जीवन-शक्ति प्रदान करने का पृथ्वी में अपार गुण है। पहलवान लोग शरीर पर मिट्टी लगाते हैं। बिजली का झटका लगने पर, सर्प जैसे विषैले जन्तुओं के काटने पर मिट्टी का प्रयोग किया जाता है। सर्प-विष को दूर करने के लिए सर्प काटे रोगी को 2 फिट के गड्ढे में बैठाकर गर्दन तक गीली मिट्टी से गड्ढे को भर कर विष दूर किया जा सकता है। घोड़े, गदहे व अन्य पशु सूखी व गीली मिट्टी में लोटकर थकान मिटाते हैं, जीवन-शक्ति प्राप्त करते हैं।
सूखी गीली मिट्टी का स्नान अति लाभदायक होता है। विदेशों में अपने देश में स्नान के पहले मुल्तानी मिट्टी का प्रयोग किया जाता है। शुद्ध मिट्टी अच्छा दन्त-मंजन भी है। मिट्टी के घर अधिक स्वास्थ्यवर्धक होते हैं। मिट्टी से घरों, दीवालों, फर्श का पोतना आज भी प्रचलित है। मिट्टी के बर्तनों में भोजन पकाना व खाना अति उत्तम तथा स्वादिष्ट है। भोजन मिट्टी के बर्तनों में खराब नहीं होता है। मिट्टी की गरम पट्टी, ठंढी पट्टी, रज स्नान, पंक स्नान, बालू-भक्षण प्राकृतिक चिकित्सा के अंग हैं।
प्राकृतिक चिकित्सा में मिट्टी तत्त्व की अति महत्ता है। मिट्टी से बहुत से रोग दूर किये जाते हैं। मिट्टी का विविध रूपों में प्रयोग कर स्वास्थ्य लाभ प्राप्त किया जाता है। खाज- खुजली, कोढ़, दाग, चर्म रोग, खून की खराबी- संबंधी रोगों में पंक स्नान अर्थात् गीली मिट्टी को शरीर में लपेट कर धूप में 15 से 40 मिनट तक बैठना चाहिए, फिर स्नान करना चाहिए। इस तरह पृथ्वी और शरीर का बहुत ही गहरा सम्बन्ध है।
Ref. Article source from Sadafa Arogya Vigyan, quarterly magazine.Author-satish chan shukla, picture source from pixabay.