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चातक पक्षी की कहानी | CHAATAK PAKSHI KI KAHAANI

चातक पक्षी की कहानी



        ‘वीरधरा’ नाम का एक स्थान था जिसमें ‘वीरभद्र’ नाम का एक महान राजा रहता था। राजा जंगल होते हुए अपने सैनिकों के साथ राजदरबार की ओर आ रहा था। रास्ते में ‘पवित्रा’ नामक नदी थी, जिसमें एक पक्षी गीरकर तड़प रहा था। 

राजा को यह देखकर रहा नहीं गया और सैनिकों को आदेश दिया कि उस पक्षी को मरने से बचाओ। सैनिक नदी में गये और पक्षी को बचा लिये। राजा ने सैनिकों से कहा कि पक्षी को अपने साथ ले चलो। पक्षी को राजदरबार में ले जाया गया। पक्षी की स्थिति खराब हो रही थी। उसे चोट लगी थी। 

राजा ने सैनिकों से फिर कहा कि पक्षी को पानी पिलाओ, उसे अच्छा लगेगा। सैनिकों ने पक्षी को पानी पिलाना शुरू किया लेकिन पक्षी ने एक बूंद भी पानी नहीं पीया। यह सूचना राजा को दी गयी। राजा ने फिर कहा, क्यों नहीं पानी पीयेगा पक्षी। मैं पिलाता हूँ। 

राजा ने भी पक्षी को पानी पिलाने का प्रयास किया लेकिन उसने पानी एक बूँद भी नहीं पीया। यह देखकर राजा को गुस्सा आ गया। और फिर पक्षी के चोंच को खोलकर जबरदस्ती मुँह में पानी डाल दिया। फिर भी पक्षी ने पानी नहीं पीया। पक्षी की स्थिति और खराब हो गयी। 

राजा चिंतित हो गया कि यह पानी क्यों नहीं पी रहा। उसी समय एक संत राजा के पास आये और कहे कि हे राजन्! यह तो चातक पक्षी है। यह स्वाती नक्षत्र के जल को छोड़कर अन्य किसी जल को नहीं ग्रहण करेगा। यह अपना प्राण त्याग देगा लेकिन अन्य जल नहीं पीयेगा। 

चातक प्रण पालन करे, प्राण जाय तो जाय।
    एक बूंद नहिं जल पीये, एक आस रहि जाय।। स्वर्वेद

चातक अपने प्रण का पालन करता है। वह घायल हो कर जल में गिरने पर भी, एक बूँद जल नहीं पीता, बल्कि मुँह बन्द कर अपना प्राण त्याग देता है। वह केवल स्वाती नक्षत्रा का ही जल पीता है। 

यह सुनकर राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ। राजा ने संत से कहा कि ऐसा दृढ़ संकल्पवान् पक्षी हमने कभी नहीं देखा। इस बात पर संत ने राजा से कहा कि हे राजन्! इस चातक पक्षी के समान मनुष्य को भी अपने लक्ष्य पर दृढ़ संकल्पित होना चाहिए। यही चातक पक्षी से हमें सीख मिलती है।

                                                                                                                                                -सनियात