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अध्यात्म शिखर सद्गुरु स्वतंत्रदेव जीवन-दर्पण | Adhyatm Shikhar Sadguru Swatantradeo Jivan Darpan

अध्यात्म शिखर सद्गुरु स्वतंत्रदेव जीवन-दर्पण

शरद-सप्तति महोत्सव



अध्यात्म के क्षेत्र में अनन्त श्री सदगुरु आचार्य स्वतंत्रदेव जी महाराज ने अलौकिक कार्य किया है और आज भी पुरे विश्व में अध्यात्म का सन्देश देकर मानव समाज का कल्याण कर रहे हैं। 

अध्यात्म शिखर सद्गुरु आचार्य स्वतंत्रदेव : जीवन-दर्पण’ एक महान दिव्य सद्ग्रन्थ है, जिसमें सद्गुरु आचार्य श्री स्वतंत्रदेव जी महाराज के सम्पूर्ण दिव्य जीवन पर प्रकाश डाला गया है। इस सद्ग्रन्थ में कुल ग्यारह खण्ड है जो अद्भुत, अलौकिक, अद्वितीय ढंग से अपनी सम्पूर्णता को संजोये हुए है।

प्रथम खण्ड 

प्रथम खण्ड परमपूज्य गुरुदेव के जीवन के सत्तर वर्षों का एक प्रकाश-चित्र है जिसका रेखांकन अद्भुत रूप में प्रस्तुत किया गया है। ऋषिकुल-परम्परा से लेकर विश्वशान्ति चेतना याज्ञिक तक के विषय इस प्रथम खण्ड में समाहित हैं। इसके साथ ही ‘सद्गुरु-स्तवन’ से सम्बन्धित कुछ कविताओं के साथ इस प्रथम खण्ड का समापन होता है।

द्वितीय खण्ड

द्वितीय खण्ड ‘कृति कौस्तुभ’ परमपूज्य सद्गुरु आचार्य स्वतंत्रदेव जी महाराज की महान कृतियों पर एक विश्लेषण है। इन कृतियों में ‘सा विद्या या विमुक्तये’ का शंखनाद है। अध्यात्म के अवतरण के ये याज्ञिक अनुष्ठान सद्गुरुदेव की कृतियों में प्रतिबिम्बत हैं। कई अध्यात्मपरक सद्ग्रन्थों की रचना के साथ कई सत्य-संधानजन्य ग्रंथों पर भाष्य लिखकर आपने जिस सर्जनात्मक ज्ञान-यात्रा का परिदृश्य उपस्थित किया है, वह प्राचीन ऋषि-परम्परा को समृद्धतर बनाता है।

भाष्य भास्वत’ में एक सुसम्बद्ध ज्ञान की अवधारणा भासमान है, जो अनुवाद नहीं बल्कि परोक्ष-अपरोक्ष अनुभूति का आख्यान है। ‘संतमत अभिमत’ में सद्गुरुदेव ने महान संत कबीर की विलक्षण वाणियों में निःसृत अध्यात्म और साधना से परिपूर्ण गूढ़ रहस्यों को सहजता के साथ व्याख्यायित किया है। इन व्याख्याओं में संतमत की आत्मा अनुप्राणित है और आध्यात्मिक रहस्यों की अनावृत्ति अनुशासित है। इसी तरह ‘वैदिक विशद चिन्तन’ में वेद-सम्बन्धी कतिपय विषयों पर मार्गदर्शक चिन्तन है। भारतीय जीवन के प्रेरणास्रोत वेद हैं जो शाश्वत ज्ञान की मंत्र-संहिताओं के संचयन हैं। सद्गुरुदेव अपने कतिपय आलेखों में ही इस महान ज्ञान के प्रकाश को सामान्यजन के लिए भी सुबोध बनाकर उनके आत्मकल्याण का मार्ग प्रशस्त कराने के लिए पर्याप्त दिशा-दर्शन प्रदान किये हैं। इन वैदिक आलेखों में सत्य का सन्धान है और वेदों के तात्विक ज्ञान का बोधगम्य अनुष्ठान भी है।

तृतीय खण्ड

तृतीय खण्ड को ‘विश्व उद्बोधन’ नाम से अभिसित किया गया है। ‘विश्व उद्भोधन’ में विश्व के विभिन्न देशों में सद्गुरुदेव के परिभ्रमण का संक्षिप्त वृत्तान्त है और वहां के लोगों के लिए अध्यात्म से जुड़ने का एक सशक्त आह्वान है। भारत के द्वितीय राष्ट़्रपति महान दार्शनिक डाॅ0 राधकृष्णन ने एक जगह कहा है- ”जहां विज्ञान हमें बाहरी दुनिया के निर्माण में सहायता करता है, वहीं दर्शन[अध्यात्म] हमारे नैतिक और आध्यात्मिक जीवन का निर्माण करता है।” ‘ विश्व उद्बोधन’ खण्ड तो जिज्ञासु होकर विश्व आवे,  कर्मगति हमसे पढ़े’ इस मंत्र-वाक्य का व्यावहारिक अनुष्ठान है।  मानवमात्र में नैतिकता और आध्यात्मिकता का स्वर मुखरित करने के लिए सदगुरुदेव सारे देश में भ्रमण करने के साथ विश्व के कई देशों में भी जा चुके हैं। विश्व के जिन देशों में सदगुरुदेव के पवित्र चरण पड़े हैं, उसी का एक संक्षिप्त लेखा-जोखा इस खण्ड में प्रस्तुत किया गया है।

चतुर्थ खण्ड 

इस ग्रन्थ के चतुर्थ खंड का नाम ‘शून्य से निर्माण के शिखर की ओर’ रखा गया है। वास्तव में इस ग्रन्थ का चतुर्थ खंड शून्य से निर्माण के शिखर की ओर सदगुरुदेव के निर्माण सम्बन्धी कीर्ति-स्तम्भ का परिचायक है। महर्षि सदाफलदेव जी महाराज अपने जीवन काल में कुछ भी नया निर्माण करने के सुझाव को निरस्त कर देते थे और कहा करते थे कि सभी निर्माण-कार्य को करने वाला आएगा और वही इसे पूरा करेगा। स्वामीजी की भविष्यवाणी के अनुसार सभी निर्माण-कार्यों को शून्य से शिखर तक पहुँचाने वाले द्वितीय परम्परा सदगुरु आचार्य श्री स्वतंत्रदेव जी महाराज का आविर्भाव इसी विशेष अर्थ में हुवा है।  ब्रह्मविद्या के विश्व प्रचार के साथ निर्माण-यज्ञ की पूर्णता की यात्रा तक के सभी कार्य आपके संरक्षण में ही सम्पादित हो रहे हैं और आगे भी होने वाले हैं। आपके यशस्वी कर-कमलों द्वारा निर्माण का जो इतिहास रचा गया है उसे सम्पूर्णता में समेटना सहज नहीं है। सभी आश्रमों के निर्माण को शून्य से शिखर तक पहुँचाने के साथ-साथ ‘स्वर्वेद महामंदिर निर्माण’ की भव्यतम योजना को मूर्त्तरूप देने का जो महँ कार्य आपने सम्पादित किया है उसका एक संक्षिप्त रूप इस ‘शून्य से निर्माण के शिखर की और’ खंड में दर्शाया गया है।  यह विनिर्माण-यज्ञ अभी चल ही रहा है। सदगुरुदेव इस महान निर्माण-यज्ञ के आज के याज्ञिक हैं। शून्य से शिखर तक की निर्माण-यात्रा के इस महान यज्ञ के आप उद्गाता हैं और उत्प्रेरक भी।

पंचम खण्ड

पंचम खंड का नाम ‘वाणी अमृत धारा’ रखा गया है। इस खंड में अनंत श्री सदगुरु स्वतंत्रदेव जी महाराज जी के दुर्लभ अमृतवाणियों का अनूठा संग्रह है। विभिन्न आयोजनों में सदगुरुदेव के मुखारविन्द से निःसृत अमृतमय वाणियों को एक स्थान  पर संग्रहित किया गया है। इन अमृतवाणियों के एक-एक वाकया में अध्यात्म का दिव्या स्पंदन है, एक-एक पृष्ठ पर अनुभूतिजन्य स्पर्श का सुरभित चन्दन है और एक-एक शीर्षक में मुक्ति के मंत्र का याज्ञिक अनुष्ठान है। ‘वाणी अमृत धारा’ खंड तो अध्यात्म के सिद्धांत और साधना के समस्त तत्वज्ञान का अक्षय कोष है और आध्यात्मिक वाङ्गमय की अजस्र ऊर्जा का जिवंत शब्दकोश है। सम्पूर्ण अध्यात्म-विज्ञान का सर इस प्रवचन संग्रह में संगृहित है।  यह शाश्वत सत्य के आभ्यन्तरिक अनुसंधान के प्रकाशमान ज्योतिपर्व का एक सुदृढ़ अनुष्ठान है। फिर भी अभी बहुत कुछ शेष रह गया है और अमृतवाणी के कुछ स्रोतों की धारा ही इसमें निनादित हो पायी है।

षष्ठ खण्ड

षष्ठ  खंड का नाम ‘दिव्य अनुभूति’ रखा गया है। इसमें अनंत श्री सदगुरु स्वतंत्रदेव जी महाराज जी के सान्निध्य में समर्पित और श्रद्धा समन्वित भाव से रहने वाले अनेक शिष्य शिष्याओं के जीवन में  सदगुरुदेव के कृपा प्रसादात बहुत सी अनुभूतियाँ संग्रहित लो गयी हैं। महर्षि पतंजलि ने अपने योगदर्शन में पांच प्रकार की सिद्धियों का वर्णन किया है – जन्म सिद्धि, औषध सिद्धि, मंत्र सिद्धि, तप सिद्धि और समाधि सिद्धि, यथा- ”जन्मौषधिमन्त्रतपः समाधिजः सिद्धयः। ” इन सभी सिद्धियों से भी श्रेष्ठ एक योगबल होता है जो विशुद्ध रूप से ब्रह्मविद्या विहंगम ोग के चेतन-साधन से अत्यंत उच्चावस्था में प्राप्त होता है।  सदगुरु-कृपा से होने वाली अनुभूतियाँ और आपके आध्यात्मिक प्रयोग से प्रकट होने वाली किंचित दिव्य विभूतियों को इस खंड में संगृहीत किया गया है जो पाठकों के लिए एक प्रेरक शक्ति प्रदान करती हैं।

 सप्तम खण्ड

इस सदग्रंथ का सप्तम खंड सदगुरुदेव की सदुक्तियों का संग्रह है जिसमें जिअं को दिशा-बोध देने वाले प्रेरक सशक्त सूत्र हैं। इसमें अध्यात्म के साथ मानवमात्र के लौकिक और पारलौकिक जीवन को उत्कृष्ट बनाने वाले मन्त्रपूत वाक्य हैं और विश्व-शांति के मंगदर्शक अध्याय हैं। सदगुरुदेव की इन उक्तियों में एक प्राणवंत चेतना का उर्ध्व प्रवाह है जिसके साथ अपने को जोड़कर हम एक आदर्श मानव बन सकते हैं।

अष्टम खण्ड

अष्टम खंड का नाम समाधान रखा गया है। इसमें अध्यात्म-सम्बन्धी अनेक दुरूह प्रश्नों का समाधा स्वयं सदगुरुदेव द्वारा किया गया है।  प्रश्नोत्तर के रूप में उभरे ये शब्द मानव-मन में उतरे अनेक संशयों का निवारण कर उसमे ज्ञान का प्रकाश भर देते हैं। आत्म-चेतना के उत्थान में यह ‘सामधान’ एक ऊर्जस्वित शक्ति प्रदान करता है। उलझे हुए मानव मन को सुलझाने में ‘समाधान’ के वाक्य सार्थक बोध प्रदान करते हैं और जीवन-यात्रा को आदर्श-पथ पर प्रतिष्ठित करने का आधान भी देते हैं।

नवम खण्ड

नवम खंड में समर्पित सेवाव्रती शिष्यों के विषय में बताया गया है।  इस खंड दो भागों में विभाजित है। प्रथम में ऐसे सेवाव्रती शिष्य जी नहीं रहे और दूसरे में वे जो वर्तमान में अपनी सेवा-भक्ति का परिचय दे रहे हैं। जो सेवाव्रती शिष्य नहीं रहे उनके प्रति इस खंड में शब्दांजलि-श्रद्धांजलि के भाव हैं और जो वर्तमान के हैं उनके लिए सदगुरुदेव के स्नेहिल आशीष की कामना है।  इस खंड के लिए ऐसे समर्पित सेवाव्रती शिष्य-शिष्याओं की लम्बी सूची है जिनमे से कतिपय प्रमुख व्यक्तियों को ही समाहित किया जा सका है। साधना और सेवा के क्षेत्र में उभरे ये नाम हम सबको एक प्रेरणा प्रदान करते हैं।

दशम खण्ड

दशम खंड का नाम ‘पत्र लोक’ रखा गया है। सदगुरुदेव अपने प्रचार-काल के प्रारम्भ से लेकर अभी तक पत्र विनिमय के माध्यम से अपने भक्त-प्रेमियों और विहंगम योग के अनुयायियों से सतत संपर्क बनाये रखने के उद्देश्य से उनके सुख दुःख से स्वयं को जोड़कर अपने आशीर्वाद से भी उन्हें अभिसिक्त करते हैं। दशम खंड सदगुरुदेव के  पत्र लोक की पवित्रता का परिचायक है, उनकी कृपा दृष्टि का संवाहक है।

एकादश खण्ड

एकादश खंड का नाम ‘चित्र-वीथिका’ रखा गया है।  इस खंड में सदगुरुदेव के देश-विदेश में हुए विभिन्न कार्योक्रमों के साक्षी के रूप में ये चित्र बहुत कुछ बोलते नजर आते हैं। इस प्रचार यात्रा के क्रम में अनेक विशिष्ट व्यक्तियों का सान्निध्य सदगुरुदेव को मिलता हरहा है और उन सबकी आकांक्षा रहती है आपके दर्शन और आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए। ऐसे संदर्भीन को छत्र वीथिका अपने माध्यम से सजीव बना देती है।