Search

Wikipedia

Search results

वनौषधि परिचय-मेथी (Fenugreek) | VANAUSHADHI PARICHAY METHI

वनौषधि परिचय-मेथी(Fenugreek)



मेथी के पत्ते (मेथी साग)
 
मेथी के विभिन्न भाषाओं में नाम
 
हिन्दी- मेथी
 
अंग्रेजी- फेनुग्रीक
 
संस्कृत- मेथिका, मेथी, मेथिनी, दीपनी, बहुपत्रिका, बहुपर्णी, वेदनी, गधबीजा, चन्द्रिका, मिश्रपुष्पा, मुनीन्द्रिका, कुन्चिका, बोधिनी, ज्योतिः, गन्धफला, वल्लरी, मन्था, कैरवी, पीतबीजा।
 
बंगला- मेथी
 
गुजराती- मेथी
 
पंजाबी- मेथी
 
राजस्थानी- मेथी
 
तमिल- वेन्द्याम
 
तेलगू- मेथी
 
कन्नड़- मेंथिया, मेन्ते
 
मलयालम- उल्लव
 
अरबी- बजरूल, हुल्बह
 
फारसी- तुख्मे शक्लीत।
 
लेटिन नाम/द्विपद- ट्रिगोनेला फोइनम ग्रीकम(Trigonella Foenum Graecum)
 
 
मेथी’ स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से अत्यंत लाभकारी आहारौषधि है, जिसका प्रयोग लगभग प्रत्येक घरों में किसी न किसी रूप में किया जाता है। मेथी के पत्तों को साग के रूप में तथा मेथी दाने को मसाले एवं औषधियों के रूप में प्राचीन काल से ही प्रयोग किया जाता रहा है। यह वनस्पति सामान्यतः भारत के सभी प्रदेशों में पायी जाती है। यह दिखने में बड़ा सुन्दर लगता है। इसका पौधा लगभग एक से दो फुट लम्बाई तक होता है। तीन-तीन पत्रक, गोलाकार तथा अग्रभाग युक्त आधे से डेढ़ इंच लंबा होता है। इसमें पुष्प एवं फल जनवरी से मार्च के महीनों में लगते हैं।
 
मेथिकामेथिनी मेथी दीपनी बहुपत्रिका। बोधिनी बहुबीजा च ज्योतिर्गन्धफला तथा।।
वल्लरी चन्द्रिका मन्था मिश्रपुष्पा च कैरवी। कुन्चिका बहुपर्णी च पीतबीजा मुनिच्छदा।।
मेथिकाावातशमनी श्लेष्मघ्नीज्वरनाशिनी। ततः स्वल्पगुणावन्या वाजिनां सा तु पूजिता।।
(भाव प्रकाश-हरीतक्यादिवर्गः 25)
 

 गुण-धर्म एवं प्रयोग

 
आयुर्वेद मतानुसार मेथी स्वाद में तिक्त, कटु, गुण में भारी, वीर्य में उष्ण यानी तासीर में गर्म, विपाक में कटु, वात, कफ, ज्वर नाशक है। मेथी को गर्भाशय संकोचक, स्तन एवं जनन पीड़ा, शोथहर, दीपन, पाचक, अग्निवर्धक, दाहनाशक माना जाता है। औषधि के रूप में खासकर कृमि, अजीर्ण, भूख न लगने आदि रोगों में इसका विशेष प्रयोग किया जाता है। मधुमेह के रोगियों के लिए यह मेथी विशेष लाभ पहुंचाने वाला पौधा है। मधुमेह रोग के अलावा मेथी का प्रयोग आयुर्वेद के अनुसार कोलेस्ट्राॅल को कम करने में, हृदय से संबंधित समस्याओं को दूर करने में, मोटापा यानी अधिक वनज को कम करने में, ब्लड प्रेशर यानी रक्तचाप को नियंत्रित करने में, कब्ज की सारी समस्याओं से निजात पाने में, बालों से संबंधित समस्या जैसे-बालों का झड़ना, सफेद होना, गंजापन, रूसी आदि में, किडनी स्टोन यानी गुर्दा पथरी को बाहर निकालने में, गठिया संबंधित रोगों में, सर्दी-जुकाम की समस्याओं को दूर करने में किया जाता है। 
 
वैसे यदि देखा जाय तो पेट से संबंधित लगभग बीमारियों में मेथी का उपयोग किया जाता है। आयुर्वेदिक चिकित्सक मेथी का प्रयोग वायु विकार को दूर करने में, पेट दर्द को ठीक करने में, चोट तथा सूजन आदि को ठीक करने में, भूख को खुब-खुब बढ़ाने में, आमातिसार में, मासिक धर्म से संबंधित रोगों में, कमर दर्द को ठीक करने में, खूनी बवासीर को ठीक करने में, एनीमिया रोग यानी शरीर में खून की कमी को दूर करने में भी करते हैं। इसके अतिरिक्त मेथी का प्रयोग गर्दन के दर्द को ठीक करने में, दिल की कमजोरी को ठीक करने में, एंजाइना के दर्द में, पित्त विकार में, टांसिल, खांसी, जुकाम, बुखार के साथ-साथ मूत्र संबंधी रोगों में भी इसका प्रयोग किया जाता है। वैद्यगण मेथी का प्रयोग कृमि रोग में, आमाशय के अन्दर घाव होने पर, कील-मुहांसे, झुर्रियां आदि में तथा सोराइसिस, फरास आदि रोगों में भी करते हैं। मेथीदाना एवं इसके पत्तों का प्रयोग रक्तचाप में तथा मधुमेह में ज्यादा किया जाता है। प्रति 100 ग्राम मेथीदाने में 333 कैलोरी, 26.2 प्रोटीन(ग्राम), 5.8 वसा(ग्राम), 44.1 कर्बोज(ग्राम) पाया जाता है। इसलिए वैज्ञानिकों ने इसे विशेष रूप से शारीरिक रोगों में अत्यंत गुणकारी बताया है।
 
 

उपयोग भाग- दाने एवं पत्ते (Seeds and Leaves)

 
डायबिटीज को ध्यान में रखते हुए मेथी पर वैज्ञानिक विश्लेषण
 
मेथी को डायबिटीज में क्यों प्रयोग करें इसका वैज्ञानिक विश्लेषण वैज्ञानिकों द्वारा बतलाया गया है। वैज्ञानिक मतानुसार मेथी की रासायनिक संरचना काा विश्लेषण करने पर यह पता चलता है कि इसकी पत्तियों में पानी लगभग 81.8 प्रतिशत, कार्बोहाइड्रेट 9.8 प्रतिशत, प्रोटीन 4.9 प्रतिशत, खनिज पदार्थ 1.6 प्रतिशत, रेशे 1.01 प्रतिशत, वसा 0.9 प्रतिशत, लोहा यानी आयरन 16.19 मिली ग्राम प्रति 100 ग्राम में पाया जाता है। साथ ही साथ इसमें अल्प मात्रा में कैल्शियम, फास्फोरस, विटामिन ए, बी, सी भी पाये जाते हैं।  वैज्ञानिक बताते हैं कि मेथी के दानों में 25 प्रतिशत फास्फोरिक एसिड, कोलाइन और ट्राइगोनेलिन एल्केलाइड्स, गोंद, लेसीथिन, स्थिर तेल, एलब्युमिन प्रोटीन, पीले रंग का रंजक पदार्थ भी मौजूद होता है। इसके सूखे पंचांग में प्रोटीन की मात्रा 16 प्रतिशत तक होती है। इसके अन्दर रक्त तथा मूत्र में ग्लूकोज की मात्रा कम करने का विशेष गुण मौजूद रहता है जिसके कारण डायबिटीज के रोगियों के लिए विशेष फायदेमंद है।
 
डायबिटीज(मधुमेह) रोगियों के लिए मेथी सेवन विधि
 
मेथी तासीर में गर्म होता है इसलिए गर्म प्रकृति वाले व्यक्तियों को सावधानीपूर्वक इसका सेवन करना चाहिए। खासकर गर्मी के मौसम में मेथी का प्रयोग कम तथा सावधानी से करना चाहिए। हां सर्दी के मौसम में विशेषकर मेथी का प्रयोग लाभकारी माना गया है। वैसे वर्षभर इसका प्रयोग होता है लेकिन गर्म प्रकृति वाले व्यक्तियों के लिए इसका सेवन गर्मी के दिनों में कम मात्रा में करना चाहिए। 
 
सावधानी के साथ प्रयोग करें
 
यदि आप गर्म प्रकृति वाले हैं
 
(क) यदि आप गर्म प्रकृति वाले हैं और आपको मधुमेह की शिकायत है तो दो चम्मच कूटी हुई दानामेथी और एक चम्मच सौंफ रात्रि में लगभग 200 ग्राम जल में भिगोंकर रख दें और प्रातः काल उसे छानकर पियें। यह विधि मधुमेह रोग में लाभ पहुंचाता है। 
 
(ख) मेथीदाना का प्रयोग मधुमेह रोग में चमत्कारी लाभ पहुंचाता है। चिकित्सक मानते हैं कि मेथीदाना के प्रयोग से डायबिटीज(मधुमेह) ठीक हो जाता है। लेकिन ठीक होने के विषय में कुछ कहा नहीं जा सकता लेकिन हां मधुमेह रोग को नियंत्रित करने में सहयोग विशेष कर सकता है। इसलिए इसके सेवन से पूर्व चिकित्सक से परामर्श भी लिया जा सकता है। आयुर्वेद ग्रन्थों में 25 से 100 ग्राम तक प्रति खुराक सेवन करने के लिए बतलाया गया है। मेथी किसी भी रूप में जैसे साग बनाकर, सब्जी के रूप में, दानों को पीसवाकर आटे के मिलाकर रोटी बनाकर लिया जा सकता है। 

(ग) चार चम्मच दानामेथी की नित्य तीन बार फंकी लेने से रक्त में ग्लूकोज की बढ़ी मात्रा को नियंत्रित किया जा सकता है। यदि मधुमेह रोग में आप किसी अन्य औषधियों का सेवन कर रहे हैं तो उसके साथ भी मेथीदाना लेने का प्रावधान आयुर्वेद शास्त्रों में बताया गया है। 
 

मधुमेह में उपयोग हेतु चूर्ण निर्माण की विधि

 
आयुर्वेद का प्राणःवनौषधि विज्ञान के अनुसार-बीजों को साफ कर उनसे दुगुने गाय के दूध में 224 घंटे तक भिगो दें, फिर दूध फंेक कर बीजों के गर्म जल से धोकर छाया में सुखा लें। सुखाने के पश्चात् पुनः गाय के दूध में 24 घंटे तक भिगो दें। फिर उसके बाद निकाल कर गर्म जल में धोकर छाया में सुखायें। इस प्रकार यह प्रक्रिया 14 बार दुहरानी चाहिए। इन बीजों का चूर्ण बनाकर स्वच्छ तथाा सूखी काँच की बोतलों में भर लें। इसका सेवन रक्त में अधिक शर्करा होने पर भी इससे बहुत ही शीघ्र लाभ मिलता है। इसका सेवन कम से कम छः महीने तक किया जाना चाहिए। 
 
इसमें मात्रा का ध्यान रखें- सामान्य बीजों का चूर्ण मात्रा में एक चम्मच यानी लगभग 5 ग्राम दूध के साथ लिया जाना चाहिए।   
 
 
मेथी का सामान्य मात्रा में प्रयोग
 
मेथीदानों का चूर्ण 3 से 5 ग्राम तक सामान्यतः लिया जा सकता है। 
 

विभिन्न रोगों में मेथी के औषधीय प्रयोग

 
सौन्दर्यवर्धक: त्वचा को सुन्दर बनाने में मेथी के पत्ते को पीस कर चेहरे पर प्रयोग किया जाता है। दाग-धब्बे मिटाने के लिए तथा त्वचा का सूखापन दूर करने के लिए मेथी के पत्ते को चेहरे पर धीरे-धीरे मलना चाहिए। इससे दाग-धब्बें एवं झूर्रियाँ मिट जाती हैं। चेहरा सुन्दर एवं तरुण सा दिखने लगता है। ज्यादातर मेथी के दानों को दूध में पीस कर भी सौन्दर्यवर्द्धन में प्रयोग किया जाता है। 
 
शक्तिवर्धक: मेथी का प्रयोग शक्तिवर्धक पेय के रूप में भी किया जाता हैै। शक्तिवर्धक पेय तैयार करने के लिए दो चम्मच की मात्रा में दानामेथी लेकर एक गिलास पानी में चार-पाँच घटे तक भिगों कर रख दें। उसके बाद उसे एक चैथाई पानी शेष रहने तक उबालें। अच्छी तरह उबल जाने के बाद अब इसे छानकर दो चम्मच शहद मिलाकर दिन में एक बार सेवन करें। यह शक्तिवर्धक औषधि शारीरिक बल प्रदान करती है। 
 
बवासीर रोग में: बवासीर से यदि खून आ रहा हो तो मेथी के दाने की 2 ग्राम मात्रा लेकर काढ़ा बनाकर रोगी को दिया जा सकता है। इससे बवासीर से खून आना बन्द हो जाता है। दूध में भी इसके खौलाकर प्रयोग किया जाता हैं। दूध में खौलाकर पिने से बवासीर में आराम मिलता है।
 
गालों की सूजन में: गालों के सूजन में मेथी के बीज और जौ के आटे के सिरके के साथ पासकर प्रयोग किया जाता हैै। सूजन उतारने के लिए मेथी का दाना लें और फिर जौ के आटे को लेकर सिरके के साथ उसे अच्छी तरह से पीस लें। अब उसका पतला लेप तैयार करके गालों पर लगावें। इससे सूजन जल्दी उतर जाता है।
 
माताओं के स्तन में दूध की कमी को दूर करने में: मेथी का प्रयोग माताओं के स्तन में दूध की कमी को दूर कर नवजात शिशु के लिए दूध की वृद्धि करने में भी किया जाता है। जिन माताओं को दूध पर्याप्त नहीं आता उनकों मेथी का उपयोग करना चाहिए।
 
⦁ 200 मिलीलीटर दूध लेकर उसमें 30 ग्राम मेथी का आटा लेकर रात में भिगोकर रख दें। फिर प्रातःकाल 50 ग्राम घी लेकर चूल्हे पर गर्म करें। गर्म हो जाने पर उसमें दूध में भिगोया हुआ मेथी का आटा डाल दें। उसके अच्छी तरह से हिलायें। अब उसमें लाल गन्ने के 20 ग्राम गुड़ को मिलाकर अच्छी तरह से हिलाएं। गर्भवती महीलायें 21 दिनों तक इसका सेवन करें। इससे स्तनों में दूध की वृद्धि होती है।
 
⦁ मेथी बीज के पाउडर लेकर उसका पेस्ट बनालें। यह पेस्ट स्त्री के स्तनों में लगाने से स्तन में दूध की वृद्धि होने लगती है।
 
⦁ मेथी साग तथा मेथी का रस लेने से भी स्तनों में दूध वृद्धि होती है।
 
⦁ मेथी चूर्ण को 250 मि.ली. दूध में अच्छी तरह पकायें। एक चैथाई दूध शेष रहने पर मिश्री मिलादें। प्रसूता स्त्री को पीने से दूध वृद्धि होती है। 
 
बालों को काला करने में: 50 ग्राम पिसी हुई मेथी दाना और मेथी के पत्ते 50 ग्राम, तिल या नारियल के 100 ग्राम तेल में डालकर चार दिन रखें। उसके बाद उसे अच्छी तरह से छान लें। नियमपूर्वक इस तेल को बालों पर लगायें। इससे बाल काले और चमकदार हो जाते हैं।
 
गंजापन दूर करने में: गंजापन को दूर करने में भी मेथी का प्रयोग किया जाता है। मेथी दाना को पीसकर पानी से पेस्ट बनाकर गंजेपन वाले स्थान पर नियमतः लगाते रहने से बाल उगने की सम्भावना बढ़ जाती है।  
 
 
 
 
Ref. सन्दर्भ - १. भावप्रकाश। २. पोषण एवं पोषाहार, मंगला कानगो ३. भोजन द्वारा चिकित्सा, डॉ. गणेश नारायण चौहान। ४.वनौषधि चंद्रोदय, चौखंभा संस्कृत संस्थान। ५. वनौषधि जड़ी बूटी चित्रावली ६. आयुर्वेद चिकित्सा प्रकाश ७. शालिग्रामनिघन्टु भूषणम। आयुर्वेद भास्कर। ८. डॉ. बिनोद कुमार नेचुरोपैथी ब्लॉग। ९. द्रव्यगुण विज्ञान।